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________________ तीर्थिक को एक ऐसा प० प्रतिपादन करे ५० प्रतिपादन करके ग० गति प्रवाद अ० अध्ययन प० प्ररूपा ॥ ६॥क० कितने प्रकार का भं० भगरन् ग० गति प्रवाद प० प्ररूपा गोः गौतम पं० पांच प्रकार का ग० गति प्रवाद १० प्रयोगगति तः ततगति बं० बंधन छेदगति उ उपपातगति वि० विहायोगति ए. यहां से आ० आरंभकर ५० प्रयोगपद नि० निर्विशेष भा० कहना जा. यावत् वि. विहायागति ११२४ Eo है, पण्णत्ते ? गोयमा ! पंचविहे गइप्पवाए पण्णत्ते तंजहा-पओगगई, ततगई, बंधणच्छे यणगई, उववायगई, विहायगई एत्तो आरब्भ पओगपदं निरवसेसं भाणियव्वं जाव * प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी * भावा * अनुवादक-बालब्रह्मचारी मनि श्री अमोलक ऋषिजी इस तरह पराजय करके गति प्रवाद नामक अध्ययन कहा ॥६॥ अहो भगवन् ! कितने प्रकार केस गति प्रवाद कहें ? अहो गौतम ! गति प्रवाद के पांच भेद कहे हैं. प्रयोगगति सो मन वचन व काया के योगों की प्रवृत्तिरततगतिमो ग्रामादि जाने की प्रवृत्ति अथवा अवधिभूत ग्रामादिक में से नगर में जाने की प्रवृत्ति ३ कर्मबंध छेदने से अथवा शरीर बंध छेदने से जीव की गति होवे सो बंधन छेद गति४अपने भव में आयुष्य क्षय कर अन्य स्थान उत्पन्न होने को गमन करना सो उपपात गति ५ मनुष्य पशु खेचरादि की शुभाशुभ गमन करने की प्रवृत्ति सो विहायो गति. इन पांचों गति का विस्तार पूर्वक कथन पन्नवणा सूत्र के सोलहवे पद से जानना. अहो भगवन् ! आपके वचन सत्य हैं यह: आठवां शतक का सातवा उद्देशा
SR No.600259
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages3132
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size50 MB
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