________________
शब्दार्थ
382
पंचमांग विवाह पण्णत्ति ( भवगती ) सूत्र
स्थविर भ० भगवन्त ते० उन अ० अन्यतीथिंक को ऐ० ऐसा व० बोले नो० नहीं अ० आर्य अ० हम । ग. जाने अ० गये नहीं वि० व्यतिक्रमते अ० व्यतीक्रमा नहीं रा० राजगृह को जा. यावत् अ० अप्राप्त 0 अ०हम अ०आर्य ग० जाते ग० गये वी०व्यतिक्रमते वी०व्यतिक्रमा रा०राजगृह न० नगर को सं० प्राप्त की का०इच्छावाले संभात हुवे.तु तुम अ० स्वयं गजाते अ० गये नहीं वी० व्यतीक्रमते अ० व्यतीक्रमा नहीं राराजगृह न० नगर को जा. यावत् अ० प्राप्त हुवे नहीं त० तच ते वे थे० स्थविर भ भगवन्त अ.अन्य
गममाणे अगए, बीइक्कमिजमाणे अवीइक्कंते रायगिहं नगरं जाव असंपत्ते ॥ अम्हेणं अजो ! गममाणे गए, वीइक्कमिजमाणे वीइक्वांते, रायगिहं नगरं संपाविउकामे संपत्ते ॥ तुज्झेणं अप्पणा चेव गममाणे अगए, वीइक्वमिज्जमाणे अवीइक्वंते, रायगिहं नगरं जाव असंपत्ते तएणं ते थेरा भगवंतो अण्णउत्थिए एवं पडिहणंति, एवं पडि
हणेत्ता गइप्पवायनामं अज्झयणं पण्णवइंसु ॥ ६ ॥ कइविहेणं भंते ! गइप्पाए उत्तर दिया कि अहो आर्यो! हम जाते को गया, व्यतिक्रमते को व्यतिक्रमा व राजगृह नगर को प्राप्त होने की इच्छावाले को प्राप्त हुवा कहते हैं.परंतु तुमही जाते हुवे को नहीं गये,व्यतिक्रमते हुवे को नहीं व्यतिक्रमे व राजगृह जाने की इच्छावाले को राजगृह अमाप्त कहते हो. फीर स्थविर भगवन्तने अन्यतीर्थिकों का
gopsck आठवा शतक का सातवा उद्देशा
98817