SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 1151
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 2 ११२१ शब्दार्थ १० पांव से घसते हो ले० मीलातेहो सं० इकठी करते हो सं० संघटन करते हो प० परिताप उपजातेहो ? कि० किलामना उपजातेहो उ उद्वेग उपजाते हो त० तब तु० तुम पुः पृथ्वी को पे० आक्रमते अ०हणते 10 तिविहं तिविहेणं. असंजय अविरय जाव एगंत बालायावि भवह ॥ तएणं ते थेरा भगवंतो ते अण्णउत्थिए एवं बयासी-नो खल अजो ! अम्हे रीयं रयिमाणा पढविं पेच्चेमो अभिहणामो जाव उवहवेमो. अम्हेणं अजो! रीयं रीयमाणा कायंवा जोगवा रीयंवा पडुच्च देसंदेसेणं वयामो, पदेसं पदेसेणं वयामो तेणं अम्हे देसं देसेणं वयमाणा पदेसं पदेसेणं वयमाणा नो पुढवि पेच्चेमो अभिहणामो जाव उवहवेमो, तएणं अम्हे पुढवि अपेच्चमाणा अणभिहणमाणा जाव अणोद्दवेमाणा तिविहं तिविहेणं संजय जाव एगंत पंडियायावि भवामो । तुज्झेणं अज्जो ! अप्पणाचेत्र तिविहं तिविहेणं असंजय जाव एगत बालायावि भवह ॥ तएणं ते अण्णउत्थिया ते थेरे भगवंते एवं वयासीभावार्थ वृत्यादि निमित्त अथवा अप्कायादि जीव संरक्षण रूप संयम के लिये ईर्यासमिति सहित सचेतन देश छोडकर अचेतन में जाते हैं और प्तचेतन प्रदेश से अचेतन प्रदेश में जाते हैं. इस लिये अहो आर्यो ! *हम संयति यावत् एकान्त पंडित हैं. परंतु अहो आर्यो ! तुम स्वयं तीन करन तीन योग से असंयति , of अविरति यावत् एकान्त बाल हो. तब अन्यतीथिकने कहा कि अहो आर्यो ! हम किस तरह तीन करन पंचमांग विवाह पण्णत्ति ( भगवती) मूत्र 2008 wwwmorrowww आठवा शतक का सातवा उद्देशा -
SR No.600259
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages3132
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size50 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy