________________
शब्दाथ स्थविर भ० भगवन्त को एक ऐसा व० बोले तु० तुम अ आर्य ति• त्रिविध तित्रिविध मे जा० यावत् *ए. एकान्त बा• अज्ञान भ० होते हो त० तब ते० वे अ० अन्यतीर्थिक ते• उन थे० स्थविर भ०भगवन्त को ए० ऐसा व० बोले तु• तुम अ० आर्य री• गात करते पु० पृथ्वी को पे० आक्रमतेहो अ० हणतेहो
भवह ॥ ४ ॥ तएणं ते अण्णउत्थिया थेरे भगवंते एवं वयासी-तुज्झेणं अज्जो तिविहं तिविहेणं असंजय जाव एगंत बालायावि भवह ॥ तएणं ते थेरा भगवंतो ते अण्णउत्थिए एवं वयासी-केणं कारणेणं अम्हे तिविहं तिविहेणं जाव एगंत बालायावि भवामो ? तएणं ते अण्णउत्थिया ते थेरे भगवंते एवंवयासी तुझेणं अज्जो ! रीयं यिमाणा पुढविं पेञ्चेह अभिहणह, वत्तेह, लेसेह, संघाएह, संघट्टेह, परितावेह,
किलामेह, उवद्दवेह ॥ तएणं तुझे पुढविं पेच्चमाणा अभिहणमाणा जाव उबद्दवेमाणा भावार्थ योगसे असंयति अविरति यावत् एकान्त बाल हो क्योंकि तुमचलते हुवे पृथ्वीकाया को हणते हो, मारते हो.
मसलते हो, संघटन करते हो, परितापना उत्पन्न करते हो, किलामना देते हो व उद्वेग उत्पन्न करते हो. ऐमा अन्यतीर्थिक का कथन सुनकर स्थविर भगवंत बोले कि अहो आर्यो ! हम चलते हुवे पृथ्वी को अतिक्रमते नहीं हैं. यावत् उद्वेग नहीं उपजाते हैं क्योंकि शारीरिक उच्चारादि के लिये, ग्लांनी की वैया
48 अनुवादक-बालब्रह्मचारीमुनि श्री अमोलक ऋषिजी
*प्रकाशक-राजाबहादुर लालासुखदेवमहायजी ज्वालाप्रसादजी