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शब्दार्थ | विकं अ० अच्युत देवलोक ऑ० आभियोगिक अ० अच्युतं देवलोक में स० सलिंगी दर्शन भ्रष्ट
उ० उपर की गे० अवेयक में ॥ १९ ॥ कल कितने प्रकार का भं० भगवन् अ० असंज्ञी आ आयुष्य गो गौतम च० चार प्रकार का अ० असंही आयुष्य णेनारकी अ० असंही आयुष्य ति० तिर्यंच अ० असंज्ञा आयुष्य म० मनुष्य अ० अमंझी आयुष्य दे० देव असंज्ञी आयुष्य अ० असंज्ञी भं० भगवन् • याणं लंतगे कप्पे, तिरिच्छियाणं सहस्सारे कप्पे, आजीवियाणं अच्चुएकप्पे, आभि
ओगिया अच्चुए कप्पे, सलिंगीदसणवावण्णगा उवरिमगेविजएसु ॥ १९ ॥ कइविहेणं भंते असण्णियाउए, पण्णत्ते ? गोयमा ! चउन्विहे असणियाउए १० तं० णेरइय असण्णियाउए तिरिक्ख जोणिय असणियाउए, मणुस्स असण्णियाउए, दे.
व असण्णियाउए ॥ असण्णीणं भंते ! जीवे किं णेरइयाउयं पकरेइ, तिरिक्ख भावार्थ
उत्कृष्ट मर्वार्थसिद्ध विमान में विराधिक, साधु जघन्य भवनपति में उत्कृष्ट सौधर्म देवलोक में अविराधिक श्रावक जघन्य सौधर्म देवलोक में, उत्कृष्ट अच्युत देवलोक में, विराधिक श्रावक जघन्य भवनपति, उत्कृष्ट ज्योतिषि में, असंज्ञी जघन्य भवभपति, उत्कृष्ट वाणव्यंतरमें शेष सब जघन्य भवनपति में उत्पन्न
हावे और उत्कृष्ट तापस ज्योतिषी, कंदर्पकी कथा करनेवाले सौधमे देवलोकमें, चरक परिवाजिक ब्रह्मदेवलोक Lage में ज्ञानादि के अवर्णवाद बोलनेवाले लांतक देवलोकमें तिर्यंच सहस्रार देवलोकमें आजीविक मतानुसारी अच्युत
देवलोक में आभियोंगिक अच्युत देवलोकौ और दर्शन से भ्रष्ट संलिंगी उपर की ग्रैबेयकमें उत्पर्य होते है। ॥ १९ ॥ अब अॅसडी की आयुष्य कहते हैं. अझे भगवन ! असंही परभव योग्य कितने प्रकार का आयुष्य
42-42 पंचांग विवाह षण्णत्ति ( भवगती) सूत्र
पहिला शतकका दूसरा उद्देशा 988-87