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शब्दार्थ
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१०१ अनुवादक-बालब्रह्मचारीमुनि श्री अमोलक ऋषिजी 8
देवलोक वि० विराधिक सं० संयतासंयति ज० जघन्य भवनपति उ० उत्कृष्ट जो. ज्योतिषी अ० असंही ज. जघन्य भ० भवनपति उ उत्कृष्ट वा. वाणव्यंतर अ० बाकी के स० सब ज० जघन्य भ० भवनपति में उत्कृष्ट ता० तापप्त जो० ज्योतिषी में कं० कंदर्पिक सो• सौधर्म देवलोक में च० चरक परिवाजिक बम ब्रह्मदेवलोक में कि० क्लिष्टपरिणामी लं० लंतक देवलोक में ति० तिर्यंच स० सहस्रार देवलोक में आ० आजी
संजमाणं जहण्णणं भवणवासीसु, उक्कोसेणं सोहम्मेकप्पे; अविराहिय संजमासंजमाणं जहण्णणं सोहम्मेकप्पे, उक्कोसेणं अच्चुएकप्पे, विराहिय संजमासंजमाणं जहण्णेणं भवणवासीसु, उक्कोसणं जोइसिएसु, असण्णीणं जहण्णणं भवणवासीसु उक्कोसेणं वाणमंतरेसु अवससा सव्वे जहण्णणं भवणवासीसु उक्कोसेणं वोच्छामि-तावसाणं ।
जोइसिएसु, कंदप्पियाणं सोहम्मे कप्पे, चरग परिव्वायगाणं बंभलोए कप्पे, किन्विसिविराधिक संयमी, अपिराधिक संयमासयमी विराधिक संयमासंयमी, असंज्ञी, तापस, कंदर्ष कथा करने, वाले, त्रिदंडिये, कपिल मुनि के संतानिये, ज्ञानादिक के अवर्णवाद बोलने वाले, तिर्यंच, आजीविक धर्म वाले व्यवहार में चारित्रवंत होते हुवे मंत्र यंत्रादिक के करने वाले आभियोगिक, और साधु वेष होने पर सम्यक्ता से भ्रष्ट निन्हव देवलोक में उसन्न होते किस २ स्थान पर उत्पन्नहोवे ? अहो गौतम असंयति भवि द्रव्य देव जघन्य भवनपति में उत्कृष्ट उपर की ग्रैवेयक में. आविराधिक साधु जघन्य सौधर्म देवलोक में
* प्रकाशक-राजाबहादुर लाला सुखदेवसहायजी मालाप्रसादजी *
भावार्थ