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शब्दार्थ
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980- पंचमांग विवाह पण्णत्ति ( भगवती) सूत्र-8880
तिर्यंच आ० आजीविक आ० आभियोगिक स०स्वलिंगी दं दर्शन से भ्रष्ट ए० इनकी दे० देवलोक में उ० उपजते क० कीसका क० कहां उ० उपपात प० प्ररूपा गो० गौतम अ० असंयति भविद्रव्यदेव ज० जघन्य भ० भवनपति में उ० उपरकी गे० ग्रैवेयक में अ० अविराधिक सं० संयति ज. जवन्य सो० सौधर्म देवलोक उ० उत्कृष्ट स० सर्वार्थसिद्ध विमान में वि० विराधिक संयति ज० जघन्य भवनपति में उ० उत सो० सौधर्म देवलोक अ० अविराधिक सं० संयतासंयति जे० जघन्य सो० सौधर्म देवलोक उ० उत्कृष्ट अ• अच्युत
किन्विसियाणं, तिरिच्छियाणं, आजीवियाणं, आभिओगियाणं, सलिंगीदसणवावण्णगा
णं, एएसिणं देवलोएसु उववजमाणाणं कस्स कहिं उववाए ५० ? गोयमा ! असंजय , भविय दव्व देवाणं जहणणं भवणवासीसु, उक्कोसणं उवरिम गेवेजएसु, अविरा
हिय संजमाणं जहण्णेणं सोहम्मे कप्पे, उक्कोसणं सव्वट्ठसिद्धे विमाणं, विराहिय मात्र क्रिया के करने वाले, प्रवा काल से निरतिचार पूर्वक पूर्ण चारित्र पालने वाले, अविराधिक संयमी
१. इसका कितनेक भावि में होनेवाला देव मो भावद्रव्य देव,चरणपरिणाम शून्य सो असंयति, अमंयतिभवि द्रव्य देव अर्थात् असंयति सम्यकदृष्टी ऐसा अर्थ करते हैं परंतु यह अर्थ यहांपर योग्य नहीं है क्योंकि इन की उत्कृष्ट उपरकी अवेयक में उत्पत्ति बतलाइ है. और सम्यग् दृष्टि देश विरति की तो मात्र अच्युत देव लोक तकही ली है इसलिये यहां मिथ्यादृष्टी असंयति भव्य अभव्य जीव ग्रहण किये हैं.
3886032 पहिला शतकका दूसरा उद्देशा 8888+
भाव