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शब्दार्थ
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सूत्र
११ अनुवादक-बालब्रह्मचरािमुनि श्री अमोलक ऋपिजी
भगवन अं० अंतक्रिया क. करे गो० गौतम अ० कितनेक क० करे अ० कितनेक णो नहीं करे अ० अंतक्रिया पद णे० जानना ॥ १८ ॥ अ. अहो भं. भगवन् अ. असंयति ५० शीवद्रव्य देव अ० अविराधिक सं० मंयति वि. विराधिक संयति अ० अविराधिक संयतासंयति वि. विराधिक सं० संयता संयति अ० असंज्ञी ता० तापप कं० कंदर्पिक च० चरक परिव्राजक कि० अशुभ परिणाम वाले ति०
संसार संचिट्ठण काले असंखज्जगुणे, तिरिक्ख जोणिय संसार संचिट्ठण काले अणंतगुणे ॥ १७ ॥ जीवेणं भंते अंत किरियं करेजा ? गोयमा ! अत्थगइए करेजा, ई अत्थेगइए जो करेजा. अंतकिरिया पदं तव्वं ॥ १८ ॥ अहभंत असंजय भविय दव्य देवाणं, अविराहिय संजमाणं, विराहिय संजमार्ग, अविराहिय संजमासंजमाणं, विराहिय संजमासंजमाणं, असण्णीणं, तावसाणं, कंदप्पियाणं, चरगपरब्वायगाणं, गुना उस से तिर्यंच संसार संचिठन काल अनंत गुना ॥ १७॥ अहो भगवन् ! जीव अंतक्रिया करे ? अहो गौतम ! कितनेक जीव अनक्रिया करे और कितनेक अंतक्रिया करे नहीं इस का विशेष अधिकार पन्नवणा के वीस वे अंतक्रिया पद में जानना. ॥१८॥ अंतक्रियाके अभावसे कोई जीव देवलोक में उत्पन्न होवे इसलिये उस का विशप स्वरूप बताते हैं. अहो भगवन् ! चारित्र परिणाम से शून्य मिथ्यादृष्टि, ई
* प्रकाशक-राजावहादुर लाला मुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी *
भावार्थ