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१३० देव ज. जेसे नारकी भ० भगवन् णे. नारकी का सं० संसार संचिठण काल जा. यावत् । संसार संचिठण काल का जा. यावत् वि. विशेषाधिक गो० गौतम स० सर्व से थोडा मा मनुष्य संसार संचिठण काल णे. नारकी संसार संचिठण काल अ० असंख्यातगुणा दे० देव मंसार संचिठण काल अ० असंख्यात गुणा ति० तिर्यंच संसार संचिठण काल अ० अनंतगुणा ॥ १७ ॥ जी जीव भं.
80 पंचमांग विवाह पण्णत्ति (भगवती) सूत्र
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सुसुण्णकाले अणंतगुणे, ॥ तिरिक्ख जोणियाणं सम्वत्थोवे असुण्णकाले, मीसकाले अणंतगुणे, ॥ मणुस्साणय, देवाणय जहा जेरइयाणं एयस्सणं भंते णेरइय संसार संचिट्ठण कालस्स जाव देव संसार संचिट्ठण कालस्स जाव विसेसाहिएवा गोयमा ?
सव्वत्थोवे मणुस्स संसार संचिट्ठण काले, णेरइय संसार संचिट्ठण काले असंखजगुणे,देव थोडा अशून्यकाल है, क्योंकि उत्पाद व उतना काल का विरह बारह मुहूर्त का है, उस से मीश्रकाल अनंत गुना, और उस से शून्यकाल अनंत गुना कहा है. तिर्यंच में सब से थोडा अशून्यकाल उस से मीश्रकाल अनंत गुना. मनुष्य व देवता का नारकी जैसे कहना. अहो भगवन् :चारों संसारसंचिठन कालमें से कोन किस से अल्प, बहत, तुल्य व विशेषाधिक है अहो ? गौतम ! सब से थोडा मनुष्य संमार संचिठन काल. उस से नारकी संसार संचिठन काल असंख्यात गुना, उस से देव संसार संचिठन काल असंख्यात
पहिला शतकका दूसरा उद्देशा 88882
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