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शब्दार्थ दे० देवता को ज. जैसे णे. नारकी ए. यह भ० भगवन् णे. नारकी का सं० संसार संचिठण काल * 19 }मु० शून्य अ० अशून्य मि. मिश्र क कौन क. किससे अ० अल्प ब० बहुत तुतुल्य वि. विशेषाधिक
गो० गौतम स० सब से थोडा अ० अशून्य काल मी० मिश्रकाल अ. अनंत गुणा सु० शून्य काल अ०१३ अनंतगुणा ति तिर्यंच का स० सर्व से थोडा अ० अशून्य काल मी० मिश्रकाल अनंतगुणा म० मनुष्य
जोणिय संसार संचिट्टण काल पुच्छा ? गोयमा ! दुविहे प० तं• असुण्णकालेय, मि स्सकालेय. मणुस्साणय देवाणय जहाणेरइयाणं । एयरसणं भंते जेरइय संसार संचिट्ठण १ कालस्स सुण्णकालस्स, असुण्णकालस्स मीसकालरस, कयरे कयरेहिंतो अप्पेवा, बहुएवा,
तुल्लेवा, विसेसाहिएवा ? गोयमा ! सळत्थोवा असुण्णकाले, मीसकाले अणंतगुणे, व मिश्रकाल. मनुष्य व देवता में तीनों काल जानना. अहो भगवन् ! इस नरक संसार संचिठन काल के शून्य, अशुन्य व मिश्रकाल में से कोन किससे अल्प, बहुत तुल्य व विशेषाधिक है ? अहो गौतम सब से
4.१ अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋपीजी
* प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी *
जाकर पुनः नरक गति में उत्पन्न हो उन जीवों आत्रित लिया गया है. यदि उसी नरक भव आश्रित कहा जाये तो अल्प बहुत्व सूत्र में अशन्य कालकी अपेक्षा से मीश्र काल को अनंत गुना कहा है वह नहीं हो सकता है जैसे एयं पुण ते जीवे पडुच्च मुत्तं न तब्भवं चेव। जइ होजंत भवंतो अणंतकालो न संभवइ
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