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________________ ११२८ मुनि श्री अमोलक ऋषिजी 89 203 अनुवादक-बालब्रह्मचारी गि० लेते अ० अदत्त भुं• भोगवते अ० अदत्त सा आस्वादने ति त्रिविध ति० त्रिविध से अ० असंयत अ० तएणं ते थेरा भगवंतो ते अण्णउत्थिए एवंवयासी-अम्हेणं अजो! दिजमाणे दिण्णे, पडिग्गाहजमाणे पडिग्गहिए, निसिरिजमाणे निसिट्रे. अम्हेणं अज्जो ! दिजमाणं पडिग्गहगं असंपत्तं एत्थणं अंतरा केइ अवहरेज्जा अम्हेणं तं नो खलु गाहावइस्स तएणं अम्हे दिण्णं गिण्हामो, दिण्णं भुंजामो, दिण्णं साइजामो, तएणं अम्हे दिण्णं गिण्हमाणा जाव दिण्णं साइजमाणा सिविहं तिविहेणं संजय जाव एगंत पंडियायावि भवामो॥ तुझेणं अजो! अप्पणाचेव तिविहं तिविहेणं असंजय जाव एगंत बालायावि अहो आर्य ! हम को कोई पुरुष आहारादि देने लगा और पात्र में नहीं पड़ा इतने में कोई उस आहार को लेजावे तो वह आहार हमारा गया परंतु गृहस्थ का नहीं गया इस से हम दिया हुवा ग्रहण करते हैं, भोगते हैं और इस तरह दिया हुवा ग्रहण करते, भोगते व आस्वादते तीन करन व तीन योग से संयति विरति यावत् एकान्त पंडित होते हैं. परंतु तुम ही तीन करन तीन योग से असंयति, अविरति यावत् एकान्त बाल होते हो. तब वे अन्यतीथिकने स्थविर भगवंत को कहा कि किस तरह हम असंयति अविरति यावत् एकान्त बाल होते हैं ? स्थविर भगवंतने उत्तर दिया कि तुम अदत्त ग्रहण करते हो यावत् इस तरह ग्रहण करते हुवे एकान्त बाल होते हो. फोर अन्यतीथिंकने स्थविर भगवंतने कहा कि किस तरह हम * प्रकाशक राजाबहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी भावार्थ
SR No.600259
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages3132
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size50 MB
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