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________________ . १११६ शब्दार्थ त्रिविध ति त्रिविध से अः असंयत अ० अविरत जा. यावत् ए० एकान्त बा० बाल भ०होवे त० तब ते० वे अ० अन्यनीर्थिक ते. उन थे० स्थविर भ० भगवन्त को ए. ऐसा ब० बोले तु० तुम अ० तिविहेणं असंजय जाव एगंत बालायावि भवामो ॥ तएणं तेअण्णउत्थिया ते थेरे भगवंते एवं वपासी-तुझेणं अजो ! दिण्णमाणे अदिण्णे, पडिग्गाहिजमाणे अपडिग्गहिए, निसिरिजमाणे आणसिटे तुझणं अनो! दिण्णमाणं पडिग्गहगं असंपत्तं एत्थणं अंतरा केइ अवहरिज्जा गाहावइस्तणं तं भंते ! णो खलु तं तुज्झे, तएणं तुझे है अदिण्णं गिण्हह जाव अदिणं साइजह, तएणं तुझे अदिष्णं गिण्हमाणा जाव एगंत बालायावि भवह ॥ तएणं ते थेरा भगवंतो ते अण्णउत्थिए एवं वयासी-नो सो दीया नहीं कहा जावे. लेने लगा लो लीया नहीं कहा जाये, और पात्र में डालने लगा सो डाला नहीं कहा जाये, और भी अहो आर्य ! तुम को गृहस्थ आहारादि देनेलगा परंतु पात्र में गया नहीं इतने में कोई पुरुष उस आहार को ले जावे तो वह आहार गृहस्थ का गया परंतु तुम्हारा नहीं गया. इस से तुम ! अदत्त ग्रहण करने वाले याश्च अदस का आसादन करने वाले हो. और इस तरह अदत्त ग्रहण करते हैं " यावत् अदच का आस्वादन करते तुम असंयति अविरति यावत् एकान्त बाल होते हो. फीर स्थविर ॐ भगवन्त उन अन्य तार्थिकों को ऐसा बोले कि अहो आर्यो! हम अदत्त नहीं ग्रहण करते हैं अदत्त नहीं 43 अनुवादक-बालेब्रह्मचारीमुनि श्री अमोलक ऋषिजी * प्रगाशक-राजाबहादुर लाला मुखदवसहायजी ज्वालाप्रसादजी *
SR No.600259
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages3132
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size50 MB
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