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शब्दार्थ
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विवाह पण्णत्ति ( भगवती ) सूत्र
उ० उद्देशा में जा. यावतं. ए० एकान्त वा० बाल भ० हो त० तब ते० व थे० स्थविर भ०भगवन्त ते० उन अ० अन्यतीर्थिक को ए० ऐमा व. बोले के किस का. कारन से अ० आर्य अ. हम ति०१
आविरय जाव एगंत बालायावि भवामो ? तएणं ते अण्णउत्थिया ते थेरे। भगवंते एवं वयासी तुझेणं अजो! अदिण्णं गिण्हह, अदिण्णं भुंजह.अदिण्णं साइजह तएणं ते तुझे अदिण्णं गिण्हमाणा अदिण्णं भुंजमाणा अदिन्नं सातिजमाणा तिविहेणं तिविहेणं असंजय अविरय जाव एगंत बालायावि भवह।तएणं ते थेराभगवंतोते अन्न. उत्थिए एवं व्यासी केणं कारणेणं अजो ! अम्हे अदिन्नं गेण्हामो अदिन्नं भुंजामो
अदिन्नं सातीजामो तरणं अम्हे अदिन्नं गेण्हमाणा जाव अदिन्नं सातिजमाणा तिविहं आस्वाद करते हो, इस तरह अदत्त ग्रहण करते, भोगते व आस्वादते हुवे तीन करन तीन योग से असंयति, अविरति यावत् एकान्त बाल होते हो. तब स्थविर भगवंत बोले कि अहो आर्यो! हम किस तरह दातार का विना दिया ग्रहण करते हैं. भोगते हैं व आस्वादते हैं कि जिस से अदत्त ग्रहण करते, भोगते
व आस्वादते तीन करन तीन योगसे असंयति यावत् एकान्त बाल होते हैं ? तब अन्यतीर्थिक बोले कि ॐ अहो आर्यो ! देनेलगा सो अदत्त कहा जाता है क्योंकि देनेलगा यह वर्तमान काल और दीया यह
अतीत काल है. वर्तमान काल और अतीत काल में अंत्यंत भिन्नपना लिया गया है इस से देने लगा
-200402108 आठवा शतक का सातवा उद्देशा
भावार्थ
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