________________
शब्दाथ
अनुवादक-बालब्रह्मचरािमुनि श्री अमोलक ऋषिजी में
जले जो० आग्न शिः जले ॥ ११॥ अ० ग्रह भं• भगवन् झि० जलता कि० क्या अ० गृह झिः जले कु० भीत्ति झि• जले क तट्टी झिः जले धा० स्थंभ झिजले ब० मोभ झि० जले २० वंश झिजले म० निवा झि० जले व रमी झि० जले छि० किलिंज झि जले छा० छादन झि० जले जो० अग्नि झि० गो० गौतम नो० नहीं अ० गृह झि• जले नो० नहीं कुछ भीत्ति झि० जले जा० यावत् छा छादन ।
नो पदीवचंपए झियाइ, जोई झियाइ ॥ ११ ॥ अगारस्सणं भंते । झियायमाणस्स किं अगारे झियाइ, कुड्डाझियाइ, कडणाझियाइ, धारणाझियाइ, बलहरणेझियाइ, वंसाझियाइ, मल्लाझियाइ बग्गाझियाइ छित्तराझियाइ, छाझियाइ, जाईज्झियाइ ? गोयमा ! नो अगारे झियाइ, नो कुड्डाझियाइ जाव नो छाणाझियाइ,
* प्रकाशक-राजावहादुर लाला मुखदर सहायजी ज्वालाप्रसादजी *
दीपक की शिखा जलती है, बत्ती जलती है, तेल जलता है, दीपक का ढक्कन जलता है, अथवा दीपक भावार्थ
की ज्योति जलती है ? अहो गौतम ! दीपक नहीं जलता है यावत् दीपक का ढक्कन भी नहीं जलता है
परंतु दीपक की ज्योति ( आग्नि) जलती है ॥ ११ ॥ अहो. भगवन् ! अग्नि से जलता हुवा गृह क्या 60गृह जलता है, पर जलता है, भित्ति जरती है, तही जलती है, स्थंभ नलता हैं, उपर की कडीयों 17 जलती हैं, वंशादि आच्छादन जलता है अथवा आग्नि जलती है ऐसा कहना ? अहो गौतम ! गृह नहीं