________________
-
शब्दार्थ
११०७
विवाह पण्णत्ति (भगवती) सूत्र
५० डाला र. रंगता र रंगा व. कहना है. हां भ० भगवन् उ० उकेलते को उ० उकेला जा. यावत् ०र० रंगा व० कहना मे वह ते. इसलिये गो० गौतम एक ऐसा वु० कहा जाता है आ० अराधक नो०
नहीं वि० विराधक ॥ १० ॥ ५० प्रदीप भ० भगवन् झि• जलता किं. क्या प० प्रदीप शिः जले ल० शिखा झि० जले ब. बत्ती झि० जले ते. तेल्ल झि० जले प. प्रदीप का चं. ढक्कन झि० जले जो० अग्नि झि० जले गो० गौतम नो० नहीं प० प्रदीप झि• जले जा. यावत् नो नहीं प. प्रदीप का ढक्कन झि.
पक्खिवेज्जा, सेणणं गोयमा ! उक्खिप्पमाणे उक्खित्ते पक्खिप्पमाणे पक्खित्ते रजमाणे रत्तेत्ति वत्तव्यं सिया ? हंता भगवं ! उक्खित्तमाणे उक्खित्ते जाव रत्तत्ति वत्तव्वं सिया, सेतेणटेणं गोयमा ! एवं वुच्चइ आराहए नो विराहए ॥ १० ॥ पईवस्सणं भंते ! झियायमाणस्स किं पदीवे झियाइ, लट्ठीझियाइ वत्ती झियाइ,
तेल्ले झियाइ, पदीवचंपए झियाइ, जोई झियाइ ? गोयमा । नो पदीवेझियाइ जाव विना रंगे हुवे वस्त्र को मजीठके रंगवाले भाजनमें डाले तब अहो गौतम ! उस वस्त्र को क्या उखेलते उखेला डालते डाला रंगते रंगा कहना ? हां भगवन् ! उस वस्त्र को उखेलता उखेला यावत् रंगते रंगा कहना. एसे ही अहो गौतम ! आलोचना प्रायश्चित्तादि करने के लिये उपस्थित बने हुवे को आराधक कहना परंतु विराधक कहना नहीं ॥ १० ॥ जो आराधक होता है वह दीपक की तरह दीपता है इस से दीपक का स्वरूप कहते हैं. अहो भगवन ! जलताहुवा दीपक का क्या दीपक जलता है,
360200 आठवा शतकका छठा उद्देशा 9
भावार्थ
880