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शब्दार्थ | *कार करूं त० पीछे थे० स्थविर की अं० पास आ० आलोचना करूंगा जा यावत् त० तपकर्म प० अंगीकार करूंगा से वह सं० निकलाहुवा अ० अप्राप्त पुं०पहिले अ० अमुख मि० हांवे से० वह भ० भगवन् किं० क्या आ० आराधक वि० विराधक गो० गौतम आ० आराधक नो० नहीं वि० विराधक किं आहए विराहए ? गोयमा ! आराहए नो विराहए ॥ सेय संपट्ठिए असंपत्ते थेराय काल करेजा सेणं भंते! किं आराहए विराहए ? गोयमा ! आराहए णो विराहए ॥ सेय संपट्टिए असंपत्तेय अप्पणाय पुव्वामेव कालं करेजा सेणं भंते ! किं आहए विराहए ? गोयमा ! आराहए नो विराहए ॥ सेय संपट्टिए संपत्ते थेराय ( गौतम ! उसे आराधक कहना परंतु विराधक नहीं कहना. ३ ऐसा दोषवाला साधु स्थविर की पास आलोचना करने का नीकला परंतु स्थविर मीले नहीं व काल कर जावे और आलोचना कर सके नहीं { तो अहो भगवन् ! क्या उसे आराधक कहना या विराधक कहना ? अहां गौतम ! आराधक कहना विराधक कहना { नहीं ४ दोषयुक्त साधु आलोचना करनेके लिये नीकला परंतु स्थविर मील सके नहीं और वह स्वयं {कालकर जावे तो उसे आलोचना करनेका परिणाम होने मे आराधक कहना परंतु विराधक कहना नहीं. उक्त {चार आलापक स्थविर को अप्राप्त आश्री कहे. अब स्थावर को प्राप्त आश्री चार आलापक कहते हैं. दोष युक्त साधु आलोचना करनेको निकला स्थविर को प्राप्तहुआ परंतु स्थावर वातादि कारन से मूर्छित
सूत्र
भावार्थ
अनुवादक - बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी
* प्रकाशक - राजाबहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी *
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