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शब्दार्थ भाडी कर्म फास्फोट कर्म दं० दंत वाणिज्य ल. लावाणिज्य के. केशवाणिज्य र रसपाणिज्य
वि. विषवाणिज्य जं० यंत्रपीलन कर्म नि० निलंछण कर्म द० दव अ. अनि दा. देना स० सरोवर V१६० द्रह त० तलाव ५० परिशोषण अ० असति का पो० पोपण इ० ये R० श्रमणोपासक सु० शुक्ल सु०, शुक्ल अ० अभिजाति से भ० भविक भ० होकर का० काल के अवसर में का० काल करके अ० अन्यतर
तंजहा इंगालकम्मे, वणकम्मे, साडीकम्मे, भाडीकम्मे, फोडीकम्मे, दंतवाणिज्ये, लक्खवाणिजे, केसवाणिजे, रसवाणिजे, विसवाणिजे, जंतपीलणकम्मे, निलंगणकम्मे, दवग्गिदावणिया, सरदहतलावारिसोसणया, असईपोसणया, इथेए समणो
वासगा. सुक्कामुक्काभिजाइया भविया भवित्ता कालमासे कालंकिचा अण्णयरेसु १९ मचादि रस का विक्रय सो रसवाणिज्य कर्म १० सोमलादि विष का विक्रय सो विषवाणिज्य कर्म F११ यंत्र से कपास, इस तिलादि का पीलना सो यंत्रपीलन कर्म १२ वृषभ, अध पुरुष वगैरह को लेछन
रहित करना सो निर्लछन कर्म १३ दव की बुद्धि से बन में आग लगाना १४ सरोवर दह नालाब वगैरह का पानी मुकाना और १० दासी के पोपण से व्यभिचार करा के अथवा कुकूट मामार्रादि शिकारी प्राणियों को पोष कर व्यापार करे सो असतिजन पोषणता. उक्त पंदरह कर्मादान के त्याग करनेवाले श्रमणोपासक शकलाभिजात भविक बनकर कालके अवसर में काल करके किसी
पंचांग विवाह पत्ति (भगवती)मत्र 488 commmmmmmmmmm
आठवा शतक का पांचवा उद्देशा