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________________ शब्दार्थ १ अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमालक ऋषिजी ३० इच्छते हैं कि क्या पु० फीर जे जो इ० ये स० श्रमणोपासक भ० होते हैं ते० उन को णो नहीं क० कल्पता है इ. यह प. पनरह क. कर्मादान स० स्वयं क० करना का कराना क० करते अ० अन्य को स० अच्छा जानना तं. वह ज. जैसे इं० अंगार कर्म व० वन कर्म सा० शकट कर्म भा० भिण्णेहिं, गोणेहि, तसपाण विवजिएहिं, वित्तेहिं वित्तिं कप्पेमाणा विहरंति. एएवि ताव एवं इच्छंति किमंग पुण जे इमे समणोवासगा भवंति. तेसिं णो कप्पंति इमाइं पण्णरसकम्मादाणाई सयंकरेत्तएवा, कारवेत्तएवा, करंतवा अण्णं समणुजाणेत्तए । जिन में बस प्राणी की हिंसा होवे वैसा व्यापार नहीं करते हैं. इस प्रकार आजीविक पंथवाले आचार पालते हुवे विचरते हैं. उक्त आजीविकमतानसाग ऐमा धर्म पालने को इच्छते हैं तो फीर जो श्रावक हैं उन का तो कहना ही क्या. उन को पन्नरह कर्मादान करने का, अन्य से कराने का व करते को अनुमोदने को नहीं कल्पता है १ अंगार कर्म-अनिविषय व्यापार करना, ईटपाकादि करना सो अंगार कर्म २ वनादि कटवाकर अश्वा बीज रोपणादि व्यापार करना सो वन कर्म ३. शकटादि वाहन बनाकर बेचना से साही कर्म ४ वृषभ, ऊंट, अश्वादि भाडे देना सो भाडी कर्म ५ हल कोदालादिक से भूमि फोडाना सो फोडी कर्भ६ हस्ती आदि के दांत का व्यापार करना सो दंतवाणिज्य कर्म ७ लाख चपडी आदिक व्यापार करना सो लाख वाणिज्य कर्म ८ गो महिष स्त्री प्रमुख केशवाले जीवों का व्यापार सो केशवाणिज्य * प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादनी *
SR No.600259
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages3132
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size50 MB
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