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________________ शब्दार्थ श्री अमोलक ऋषिजी प्ररूपा अ० अशुद्ध ५० भोगनेवाला स. सर्व स. सत . हननेवाला छ० छेदनेवाला भे• भेदनेवाला लुं० छेदकर वि. विशेष छेदकर उ० उपद्रव कर आ० आहार आ० आहार करे त. तहां इ० यह द्वादश आ०आजीविक उ० उपासक १० हैं तं वह ज जैसे ता०ताल ता०ताल प्रलम्ब उ० उविह सं० संविहम अ० अविविध उ० उदक ना. नामदक न. नमक अ० अनुपालकमं० शंखपालक अ० अयंपल का - थूलगस्स मेहुणस्सवि,परिग्गहस्स जाव करतं नाणुजाणइ कायसा|एएखलु एरिसगासमणो वासगा भवंति नो खलु एरिसगा आजीनियो वासगाभवंति ॥ ४ ॥ आजीवियसमय . स्सणं अयम? पण्णत्ते अक्खीणपडिभोइणो, सव्वसत्ता से हंता, छेत्ता भेत्ता,लुपित्ता विलुपित्ता, उद्दवइत्ता आहार माहारेति ॥ तत्थ खलु इमे दुवालस आजीवियोवासगा ४१. और अनागत काल के प्रत्याख्यान के ४०. सब मीलकर १४७ भांगे होते हैं. स्थूल प्राणातिपात के जैसे १४७ भांगे कहे वैसे ही स्थूल मृषावाद, स्थूल अदत्तादान स्थल स्यूल परिग्रह १.४७ भांगे जानना. इस अनुसार जो व्रत पालनेवाले होते हैं वे ही श्रावक कहे जाते हैं. जैसे अमणोपासक के लक्षण कहे वैसे ही लक्षणवाले आजीविक पंथ के अंपणोपामक नहीं होते हैं ॥३-४ ॥ गोशालक के सिद्धांत का ऐसा अर्थ कहा किवि पुष्य तय नहीं हुआ है ऐसा अफामुक भोगनेवाले असंयति सब सत्वों को मारकर, छेदकर, भेदकर, अंगोपांगादि छीनकर उपद्रव उपाकर प्रकाशक-राजावहादुर लाला मुखदेवसहायजी घालाप्रसादजी * भावार्थ अनुवादक-बालब्रह्म 4
SR No.600259
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages3132
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size50 MB
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