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सूत्र
भावार्थ
43 अनुवादक - बालब्रह्मचारीमुनि श्री अमोलक ऋषिजी
नभइ ॥ सेकेणं खाइणं अद्वेणं भंते ! एवं बुच्चइ जायं चरइ नो अजायं चरइ ? गोयमा ! तस्सणं एवं भवइ नो मे माया, जो मे पिया, णो मे भाया, जो मे भइनी, भजा, नो मे पुत्ता नो मे धूया, नो मे सुण्हा, पेजबंधणे पुण से अवोच्छिण्णे भवइ से ते द्वेणं गोयमा ! जाव नो अजायं चरइ ॥ २ ॥ समणोवासगस्तणं भंते ! वामेव थूलए पाणाइवाए अपच्चक्खाए भवइ, सेणं भंते ! पच्छा पञ्चाइक्खमाणे किं करेइ ? गोयमा ! तीयं पडिक्कमइ, पडुपण्णं संवरेइ, अणागयं पच्चक्खाइ ॥ तीयं नहीं सेवता है ? अहो गौतम ! सामायिक व्रत में उस को ऐसा विचार होता है कि माता, पिता, भ्राता, (भगिनी, भार्या, पुत्र, पुत्री व पुत्रवधू ये मेरे नहीं हैं परंतु सामायिक व्रत पूर्ण हुए पीछे राग बंधन से निवृत्ति नहीं होती है इसलिये ऐसा कहाजाता है कि जाया का सेवन करता है. परंतु अजायाका सेवन नहीं करता है ||२|| अहो भगवन् ! श्रमणोपासके को पहिले स्थूल प्राणातिपात का अप्रत्याख्यान होता है. फीर प्रत्याख्यान करते हुवे क्या करता है? अहो गौतम ! अतीतकाल को प्रतिक्रमता है, वर्तमान काल को {संगरता है और अनागतकाल का प्रत्याख्यान करता है. अहो भगवन्! अतीत कालको प्रतिक्रमता हुवा क्या तीन करन तीनयोग से प्रतिक्रमता है, तीन करन दोयोग से, तीन करन एकयोग से, दो करन तीनयोग से, करन दो योग से, दो करन एक योग से, एक करन तीन योग से, एक करन दो योग से व एक
* प्रकाशक - राजाबहादुर लाला सुखदेवसहायजी जालाप्रसादजी
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