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काव्दा
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सूत्र
ऐसा वु. कहा जाता है. स. अपने भ० भंड की अ० गवेषना करे नो० नहीं प० दूसरे के भं० भंड की अ० गवेषणा करे ॥ १ सरल शब्दार्थ ॥ २-३-४ ॥ आ० आजीवक स० समय का अ० यह अर्थ १० रयणमादिए संतसार सावएजे ममत्तभावे पुणसेअपारणाए भवइ से तेणटेणं गोयमा ! एवं वुच्चइ सयं भंडं अणुगवेसइणोपरागयंभंडं अनुगवेसइ॥१॥समणोवासगस्सणं भंते! सामाइयकडस्स समणोवासए अत्थमाणस्स केइ जायं चरेजा, सेणं भंते ! किं जायं चरइ, अजायं चरइ ? गोयमा ! जायं चरइ नो आजायं चरइ ॥ तस्सणं भंते !
तेहिं सीलब्धय गुण वेरमण पञ्चक्खाण पोसहोववासेहिं सा जाया अजाया भवइ ? सामायिक व्रत पूर्ण हुए पीछे ममत्व भाव से अपरिजात धनता है इसलिये अहो गौतम ! ऐमा कहा गया है। कि स्वकीय भंड की अनुगवेषणा करता है परंतु परकीय भंड की अनुगवेषणा नहीं करता है ॥१॥ अहो भगवन् ! श्रमण उपाश्रय में सामायिक व्रत से बैठा हुवा श्रमणोपासक की स्त्री को कोई जार पुरुष सेवे तो क्या वह जाया [स्त्री ] को सेवता है या अजाया को सेवता है ? अहो गौतम ! जाया os सेवता है परंतु अजाया नहीं सेवता है. अहो भगवन् ! उस को शील व्रत गुणवत, विरमणव्रत और मसाख्यान पौषधोपवास से क्या जाया अजाया होती है? हां गौतम! उस को जाया अजाया होती है.. अहो भगान् ! जब ऐसा है तो किस कारन से ऐसा कहा जाता है कि जाया सेवता है परंतु अजाया ।
48 पंचमांग विवाह पण्णात्ति ( भगवती) सूत्र
4284 आठवा शतकका पांचवा उद्देशा84881
भावार्थ