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शब्दार्थ स. श्रमणके उपाश्रय में अ० बैठे हुवे के के० कोई भं० भंडोपकरण अ० लेवे मे वह भगवन् त.
उम भं० भंडोपकरण को अ० गवेषता कि क्या स० अपने भं० भंडोपकरण अ० गवेषे १० दूसरे के G० भंडोपकरण अ० गयेषे गो० गौतम स० अपने मं० भंडोपकरण अ० गवेषे नो० नहीं प० दूसरे के
भ० भंडोपकरण अ० गवेषे न० उस को भं० भगवन ते • उस सी० शीलवत गु० गुणविरमण ५० प्रत्याख्यान पो० पोषध उपवास से से० वह भं० भंडोपकरण अ० अभंड भ• होवे हं० हां भ० होवे से वह
भंडं अणुगवेसइ ? गोयमा ! सयं भंडं अणुगवेसइ, नों परायगं भंडं अणुगवेसइ ।। तस्सणं भंते ! तेहिं सीलव्वय गुण वेरमण पच्चक्खाण पोसहोववासेहिं से भंड़े
अभंडे भवइ ? हंता भवई । सेकेणं खाइणं अटेणं भंते ! एवं वुच्चइ सयं भंडं अणुग
श्रमण के उपाश्रय में सामायिक व्रत अंगीकार करके बैठा हुवा श्रावक के भंडोपकरण कोई पुरुष लेजावे. भावार्थ
फीर सामायिक पूर्ण हुघे पीछे उस भंडोपकरण को गवेषते हुए क्या वह अपने भंडोपकरण की गवेषणा करता है या अन्य के भंडापकरण की गवेषणा करता है ? : अहो गौतम ! वह सामायिक व्रतवाला
+ यहांपर प्रश्न कर्ता का यह अभिप्राय है कि सामायिक में भंडोपकरण के प्रत्याख्यान होने से सामायिक व्रतवाले के भंडोपकरण नहीं हो सकते हैं परंतु ममत्व भावका हेद नहीं होने से सामाईक एर्ण हुए प.हे अनुमण करना १ ऐसा कहा; सामायिक व्रत में गवेषणा अयुक्त है;
480 पंचमाङ्ग विवाह पण्णात्ति (भगवती ) सत्र
आठया शतकका पांचवा उद्देशा
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