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________________ शब्दार्थ निर्विशेष भा० कहना जा. यावत् मा०माया प्रत्ययिकी वि०विशेषाधिक से वह ए०ऐसे भं भगवन।।८॥४॥ रा० राजगृह न. नगर में जा. यावत् ए. ऐसा क. बोले आ० आजीविक भं० भगवन् थे० स्थविर भ० भगवन्त को ए. ऐसा व० बोले स० श्रमणोपासक के भं० भगवन् सा० सामायिक क की हुई वत्तियाओ विसेसाहियाओ।सेवं भंते भंतेत्ति॥अट्ठमसए चउत्थो उद्देसो सम्मत्तो ॥८॥४॥ रायगिहे नयरे जाव एवं वयासी आजीवियाणं भंते ! थेरे भगवंते एवं वयाटी समणोवासगस्सणं भंते ! सामाइयकडस्स समणोवासए अत्थमाणस केइ भंडं ___ अवहरे ना सेणं भंते ! तं भंडं अणुगवेसमाणे किं सयं भंडं अणुगवेसइ, परायगं भावार्थविशेषाधिक कौनसी क्रिया वाले हैं ? अहो गौतम ! सब से थोडे मिथ्यादर्शभिकी क्रियावाले इस से अप्रत्याख्यान प्रत्यायकी क्रिया वाले विशेषाधिक, इस से परिग्रहीकी क्रिया वाले विशेषाधिक इस आरंभिकी क्रिया वाले विशेषाधिक इस से माया प्रत्यापकी क्रिया वाले विशेषाधिक. अहो भगवन् ! आप के वचन सत्य हैं यह आठवा शतक का चौथा उद्देशा समाप्त हुआ ॥ ८॥ ४॥ * क्रिया अधिकार से पांचवे उद्देशे में परिग्रह क्रिया का स्वरूप कहते हैं. राजगृह नगर के गुणशील नामक उद्यान में श्रमण भगवंत महावीर स्वामी को वंदना नमस्कार करके श्री.गौतम स्वामी प्रश्न पूछने लगे कि अहो भगवन् ! आजीविक ( गोशालक ) के शिष्योंने स्थविर भगवंत को ऐसा प्रश्न किया कि 42 अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी, प्रकाशक-राजावहादुर लाला मुखदेव सहायजी ज्वालाप्रसादजी*
SR No.600259
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages3132
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size50 MB
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