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शब्दार्थ |
सूत्र
भावार्थ
* पंचमांग विवाह पण्णति ( भगवती ) सूत्र 40
अचरिम गो० गौतम च० चरिम अ० अवरिम से वह ए० ऐसे ॥ ८ ॥ ३ ॥
रा० राजगृह जा० यावत् ए० ऐना ब बोले क० कितनी मं० भगवत् कि० क्रिया प० प्ररूपीं गो० गौतम पं० पांच क्रिया प० प्ररूपी का कायिकी अ० अधिकरणिकी ए० ऐसे कि० क्रियापद नि० सेवं भंते भंतेति ॥ अट्टमसए तइओ उद्देसो सम्मत्तो ॥ ८ ॥ ३ ॥
रायगिहे जाव एवं वयासी कइणं भंते! किरिया पण्णत्ता ? गोयमा ! पंचकिरिया प० तंजहा काइया अहिगरणिया एवं किरिया पदं निरवसेसं भाणियव्वं जाव माया{ पनत्रणा सूत्र से जानना अहो भगवन् ! आपके वचन तथ्य हैं. यह आठवा शतक का तीसरा उद्देशा संपूर्ण हुआ ॥ ८ ॥ ३ ॥
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तीसरे उद्देशे में चरम अचरम का कहा अब क्रिया का अधिकार
कहते हैं राजगृह नगर के गुण
शील नामक उद्यान में श्री श्रमण भगवंत महावीर स्वामी को वंदना नमस्कार कर श्री गौतम स्वामी पूछने लगे कि अहो भगवन् ! क्रिया के कितने भेद हैं ? अहो गौतम ! क्रिया पांच प्रकार की कही है. कायिकी, अधिकरणिकी, प्रद्वेषिकी, परितापनिकी व प्राणातिपातिकी इनका विवेचन पद्मपणा सूत्र के बावीस वे क्रिया पद में विस्तार पूर्वक है इस का अंतिम सूत्र यह है अहो भगवन् ! आरंभिकी, परिग्रहिंकी, मायाप्रत्ययिकी, अमत्याख्यान व मिथ्यादर्शनशल्य इन पांचों क्रियाओं में कम ज्यादा यावत
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आठवां शतकका चौथा उद्देशा 48
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