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28 अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी
भगवन् दु. द्विधा ति त्रिधा सं० संख्यातवार छि० छेदा जे. जो अं० अंतर से वे ते० उन से जी. जीव प्रदेश से फु० स्पर्श हं० हां फु० स्पर्शे ॥२॥ पु. पुरुष भं० भगवन् अं० अंतर ह. हस्त से पा० पांव से अं० अंगुलि से स० शलाका से क काष्ट से क. छोटा काष्ट से आ० थोडा स्पर्श सं० बहुत स्पर्शे
आ. एक वक्त स्पर्श वि० बहुत वक्त स्पर्शे अ० अन्यतर तितिक्ष्ण स० शस्त्र जात मे आ० छेदता वि० विशेष छेदता अ० अग्निकाया से स० जलाता ते. उन जी० जीव प्रदेश किं० किंचित् आ० आबाघ वि०
मणुस्सावलिया महिसे,महिसावलिया,एएसिणं भंते! दुहावा तिहावा संखेजहावा छिण्णाणं जे अंतरा तेविणं तेहिं जीव पएसेहिं फुडा? हंता फुडा॥२॥ पुरिसेणं भंते!अंतराहत्थेणवा, पाएणग, अंगुलियाएवा, सलागाएणवा,क?णवा,कलिंबणवा,आमुसमाणेवा, संमुसमाणे, वा आलिहमाणेवा, विलिहमाणेवा अण्णयरेणवा तिक्खेणं सत्थजाएणं आच्छिदमाणे
वा, विच्छिदमाणेवा, अगणिकाएणं समोडहमाणे तेसिं जीवपएसाणं किंचि आबाहं वा मनुष्य मनुष्य की पंक्ति, महिष व महिष की पंक्ति, इनजीवों के दोखंड, तीन, यावत् संख्यात खंडकरे उनी खंड के बीच में क्या जीव अथवा अजीव के प्रदेश स्पर्श हवे हैं ? हां गौतम ! स्पर्श हुवे हैं ॥२॥ अहो? भगवन् ! क्या पुरुष किसी हस्त, पांव, अंगूलि, सलाका, कष्ट, व काष्ट के टुकडे से थोडा स्पर्शता हुवा बहुत स्पर्शता हुवा, थोडा खीचता हुवा, बहुत खींचता हुवा, किसी तीक्ष्ण शस्त्र से एकवार या वारंवार
*प्रकाशक-राजाबहादुर लाला सुखदेवसहाय जी ज्वालाप्रसादजी*
भावार्थ