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शब्दार्थ अ० अनंत जी०जीव वाले अ० अनेक प्रकार के तं० वह न० जैसे आ० आलु मू० मूली सिं०अदरख २०
ऐसे ज० जैसे स० सातवे स० शतक में जा० यावत् सी० शीतोष्ण मु० मुसुंढी जे. जो अ० अन्य त० ७ तथा प्रकार के सेः वह अ० अनंत जीव वाले ॥ १॥ अ० अथ भं० भगवन् कुं० कूर्म कु. कूर्म पंक्ति गोलसर्प गोलसर्प पंक्ति गो गो गो गौपंक्ति म मनुष्यम० मनुष्य पंक्ति म०महिष १० महिषपक्ति ए०इन भं०७
अणंतजीविया अणेगावहा पण्णत्ता तंजहां-आलुए, मूलुए, सिंगबरे, एवं जहा सत्तमसए जाव सीउण्हे मुसुंढी जेयावण्णे तहप्पगारा, सेत्तं अणंतजीविया ॥ १ ॥
अह भंते ! कुंमे, कुम्मावलिया, गोहा, गोहावलिया, गोणा, गोणावलिया, मणुस्से, भाव
भेद ? अहो गौतम ! एक गुठलीवाले वृक्ष के अनेक भेद जो निंब, आम्र, जाम्बु, कसुंबा, शाल, अकोल, पील, सालू, मीलत, मालु, वावल, पलाम, करंजी, इत्यादि नाम पनवणा सूत्र में कहे हैं. अहो.. भगान् ! बहुत बीजवाले के कितने भेद कहे हैं ? अहो गौतम ! बहुत बीजबाले के अनेक भेद कहे हैं.
जसे आर्थिक. तिदुक, कविट, अबाडा, मातुलिंग, विल, आंवले, फनस, दाडिम, आशोढ, वड वगैरह नाम है 50 पन्नवणा सूत्र से जानना. अहो भगवन् ! अनंत जीववाले वृक्ष के कितने भेद कहे हैं ? अहो गौतम !!
अनेक भेद कहे हैं. जैसे आलू, मूला, अदरख, मुमुंढी, वगैरह सातवे शतक में कहे वैसे जानना ॥१॥ 10 अहो भगवन् ! काछवे, काछवे की पंक्ति, गोधा (सर्प की जाती) गोधा की पंक्ति, बैल, बैल की पंक्ति
पंचमांग विवाह पण्णति ( भगवती) मूत्र
आठा शतकका तीसरा उद्देशा