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सूत्र
भावार्थ
* अनुवादक बालब्रह्मचारीमुनि श्री अमोलक ऋषिजी
सत्वा मणनाण पज्जवा विभंगनाण पज्जवा अणंतगुणा, ओहिनाण पज्जवा अणंतगुणा सुयअण्णाण पज्जा अनंत गुणा सुयनाण पज्जवा विसेसाहिया, मइ अण्णाण पज्जवा अनंतगुणा, आभिणिबोहिय नाणपज्जवा विसेसाहिया, केवलणाण पज्जवा अनंतगुणा, श्रुत अज्ञान व विभंग ज्ञान के पर्यव अनंत हैं ऐसा जानना. अब इन की अल्पाबहुत्व. सब से थोडे मनःपर्यव ज्ञान के पर्यव क्योंकि मनोद्रव्य मात्र विषयभूत है इस से अवधिज्ञान के पर्यव अनंतगुने इस से { श्रुत ज्ञान के पर्यत्र अनंतगुने इस से आभिनिबोधिक ज्ञान के पर्यत्र अनंतगुने इस से केवल ज्ञान के पर्यत्र अनंतगुने तीन अज्ञान आश्री सब से थोडे विभंग ज्ञान के पर्यत्र इस से श्रुत अज्ञान के पर्यत्र अनंतगुने इस से मति अज्ञान के पर्यत्र अनंतगुने. अब इन आठों की अल्पाबहुत्व. सब से थांडे मनःपर्यत्र ज्ञान के पत्र इस से विभंग ज्ञान के पर्यत्र अनंतगुने इस से अवधि ज्ञान के पर्यत्र अनंतगुने, इस से श्रुत अज्ञान के (पर्यव अनंतगुने त अज्ञान श्रुत ज्ञानी के औघ से स्वमूर्त अमूर्त सब पर्याय का ज्ञान के पर्यव विशेषाधिक कितनेक श्रुत ज्ञानी के पर्यत्र अविषयकृत पर्याय को
विषयपना से, इस से श्रुत
प्रगट करे इसलिये, इस से
मति अज्ञान के पर्यव अनंतगुने श्रुत ज्ञान से कही हुई वस्तु में मवर्ते इसलिये, इस से आभिनिवोधिक ज्ञानके पर्यव विशेषाधिक किसीने मति अज्ञान विषय किया नहीं ऐसे जो भाव उस का विषय के कारन से इस से
* प्रकाशक राजाबहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी *
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