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भावार्थ
PHg पंचमांग विवाह पण्णत्ति ( भगवती ) सूत्र <
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पजबा अणंतगुणा, आभिणिबोहिय नाण पजवा अणंतगुणा, केवलनाण पज्जया अणंतगुणा ॥ एएसिणं भंते ! मइ अण्णाण पजवाणं, सुयअण्णाण पजवाणं, विभंग नाण पजवाणय कयरे २ जाव विसेसाहियावा ? गोयमा ! सव्वत्थोवा विभंग नाण पजवा, सुयअण्णाण पजवा अणतगुणा, मइ अण्णाण पजवा अणंगुणा ॥ एएसिणं भंते! आभिाणबोहिय नाण पजवाणं जाव केवलणाण पजवाणं, मइ अण्णाण पजवाणं
सुयअण्णाण पजवाणं विभंग नाण पजवाणय कयरे २ जाव विसेसाहियारा ? गोयमा अक्षर श्रुतादि भेद से अनंत हैं. क्षयोपशम वैचित्र्य विषय की अनंतता से श्रुतानुसारी बोध के अनंतपना से. अथवा अविभाग खंड के अनंतपना से. अथवा श्रुत ग्रन्थानुसारी ज्ञान सो श्रुत ज्ञान अक्षरात्म अक्षर सो अकारादि. एक अक्षर के उदात्त, अनुदात्त व स्वरिन तथा सानुनासिक अननुनामिक, अल्प प्रयत्न महा प्रयत्नादि भेदों से संयुक्त असंयुक्त भेद से अकरादि नाम के अनंतपना से अनंत कहे हैं. यो श्रुत ज्ञान के अनंत पर्यव कहे हैं. अवधि ज्ञान के पर्यव अनंत कहे हैं. अवधि ज्ञान के भेद भवप्रत्यय ४० व क्षयोपशम से नरक, तियेच, देव मनुष्य रूप के स्वामी भेद से असंख्यात तद्विषयभूत क्षेत्र काल भेद ७ अनंत भेद तद्विषय द्रव्य पर्याय से अथवा अविभाग खंड से अनंत मनःपर्यव व केवल ज्ञान के स्वपर्याय
के स्वाम्यादि भेद से परिच्छेद की अपेक्षा से स्वगत विशेष अनंता अनंत द्रव्य पर्याय. ऐसे ही मति,
आठवा शतक का दूसरा उद्दशा 80-8.20