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________________ सूत्र भावार्थ <-८०३ अनुवादक बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी अनंता आभिणिबोहियनाणपजवा पण्णत्ता ॥ केवइयाणं भंते सुयनाणपज्जवा प० एवं चैत्र, एवं जाव केवलनाणस्स ॥ एवं मइ अण्णाणस्स, सुयअण्णाणस्सय । केवइ याणं भंते! विभंगनाणपजवा प० ? गोयमा ! अनंता विभंगनाण पज्जवा प० ॥ एएसिणं भंते ! आभिणिबोहियनाण पंजवाणं, सुयणाण पज्जवाणं, ओहिनाण पंजवाणं मणपजवणाणपज्जाणं, केवलणाण पजवाण य कयरे २ जाव विसेसाहियावा ? गोयमा ! सव्वत्थोवा मणनाण पजवा, ओहिनाण पजवा अनंतगुणा, सुयनाण पर्यव द्वार कहते हैं. मति ज्ञान के पर्यव अनंतगुने पर्यव के दो भेद. १ स्वपर्यव २ परपर्यव. क्षयोपशम की विचित्रता से अवग्रहादि मति विशेष सो स्वपर्यव. जैसे एक अवग्रह से अन्य अवग्रहादि अनंत भाग वृद्धि से विशुद्धि तथा अन्य असंख्यात भाग वृद्धि अपर असंख्यात भाग वृद्धि, वृद्धि तदन्य असंख्यात गुन वृद्धि, यों संख्याते के संख्यात भेदपना से असंख्याते के से अनंत के अनंत भेदपना से अथवा ज्ञेय के अनंतपना से प्रतिज्ञेय को भेदने से अन्य संख्यात गुन असंख्यात भेदपना अथवा मति ज्ञान के अविभाग पाले छेदकर वृद्धि से छेदते हुए अनंत खण्ड होते हैं इसलिये इस के अनंत पर्यव कहे हैं और { जो पदार्थ मति ज्ञान परिछिन्न घटादि वस्तु के व्यतिरेक जो पटादि पदार्थ पर्याय सो पर पर्याय. वे स्वपर्याय से अनंतगुने हैं. ऐसे ही श्रुत ज्ञान के अनंत पर्यत्र कहे हैं. १ पर्याय जो श्रुत ज्ञान के स्वगत प्रकाशक - राजाबहादुर लाला सुखदेवसहामजी ज्वालाप्रसादजी * 0606
SR No.600259
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages3132
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size50 MB
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