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वमाइं साइरगाई। आभिणिबोहियनाणीणं भंते ! एवं नाणी आभिणिबोहिय नाणी जाव केवलनाणी, अण्णाणी मइअण्णाणी सुय अण्णाणी विभंगनाणी; एएसिणं अटण्हवि संचिटणा जहा कायद्विइए अंतरं सव्वं जहा जीवाभिगमे अप्पाबहुगाणि, तिष्णि जहा बहुव
त्तव्वयाए ॥ २६ ॥ केवइयाणं भंते ! आभिणिबोहियनाणपजवा ५० ? गोयमा ! भावार्थ
परावर्त. विभंग ज्ञान की स्थिति जघन्य एक समय उत्कृष्ट तेतीस सागरोपम व देश ऊना क्रोड पूर्व अधिक इस का सब वर्णन जीवाभिगम मूत्र से जानना. इस का अंतर मति, श्रुत, अवधि व मनापर्यव ज्ञान का अंतर जघन्य अंतर्मुहूर्न उत्कृष्ट देश ऊना अर्ध पुद्गल परावर्त. केवल ज्ञान का अंतर नहीं. मति अज्ञान व श्रुत अज्ञान का जघन्य अंतर्मुहूर्न उत्कृष्ट साधिक ६६ सागरोपम. विभंग ज्ञान का जघन्य अंतर्मुहूर्त उत्कृष्ट अनंत काल. अल्पाबहुत्व सबसे थोडे मनःपर्यव ज्ञानी क्योंकि यह ज्ञान अप्रमत्तसंयति को होता है इस से
अवधि ज्ञानी असंख्यातगुने देव नरक आश्री इस से मति श्रत ज्ञानी परस्पर तल्य विशेषाधिक विकलेन्द्रिय हैं आश्री इस से केवल ज्ञानी अनंतगुने सिद्ध आश्री अज्ञान में सब से थोडे विभंग ज्ञानी इस से मति श्रुत
अज्ञानी परस्रप तुल्प अनंतगुने. आगे ज्ञान अज्ञानकी अल्पाबहुत्व. सब से थोडे मन:पर्यव ज्ञानी इस से अवधिज्ञानी असंख्यातगुने इस से मति श्रुत ज्ञानी परस्पर तुल्य विशेषाधिक इस से विभंग ज्ञानी असंख्यातगुने इस मे केवल ज्ञानी अनंनगुने और इस से मति अज्ञानी व श्रुत अज्ञानी परस्पर तुल्य अनंतगुने ॥ २६ ॥ अव
पंचमाङ्ग विवाह पण्णत्ति ( भगवती ) सूत्र 408203
3 आठमा शतक का दूसरा उद्देशा
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