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सूत्र
भावार्थ
43 अनुवादक- बालग्रह्मचारी मुनि श्री अमालक ऋषिजी
भावे जाइपास, ॥ २५ ॥ नागीणं भंते ! नाणीत्ति कालओ केवचिरं होइ ? गोयमा ! नाणीदुविहे प० तं साइएवाअपज्जवसिए, साइएवासरज्जवसिए ॥ तत्थणं जे से साइएसपज्जवलिए से जहणेणं अंतीमुहुत्तं, उक्कोसेणं छासट्टिसागरोजानना || २५ || अहो भगवन् ! ज्ञानी जीव ज्ञानीपने कितना कालतक रहे ? अहो गौतम ! ज्ञानी के ( दो भेद आदि सहित अंत रहित और आदि व अंत सहित इन में से दूसरा भांगावाला ज्ञानी ज्ञानी - { पने जघन्य अंतर्मुहूर्त उत्कृष्ट साधिक ६६ सागरोपम रहे. अनुत्तर विमान के दो भव करने से अथवा अच्युत विमान में तीन भव करने से उक्त काल पूर्ण होता है अधिक में मनुष्य भव की स्थिति आजाती है. पांच ज्ञान तीन अज्ञान इन आठों का अवस्थित काल अहो भगवन् ! कितना है ? अहो गौतम ! मति (श्रुति दोनों ज्ञान का जघन्य अंतर्मुहूर्त उत्कृष्ट ६६ सागरोपम अवधि ज्ञान की जघन्य एक समय उत्कृष्ट | (६६ सागरोपम मन:पर्यय ज्ञान की स्थिति जघन्य एक समय उत्कुष्ट देश ऊना क्रोड पूर्व केवल ज्ञान आदि सहित व अंत रहित है, मति अज्ञान व श्रुत अज्ञान की स्थिति के
तीन भेद अनादि अनंत अभव्य
आश्री अनादि सान्त व सादि सान्त, सादि सान्त की जघन्य अंतर्मुहूर्त उत्कृष्ट देश ऊना अर्ध पुद्गल
* प्रकाशक - राजाबहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादगी *
१. जब विभंग ज्ञानी सम्यक् प्रतिपन्न होता है तब एक समय में विभंग ज्ञानी का अवधि ज्ञानी बनकर शीघ्र ही दूसरे समय में पडबाइ होता है. इस से एक समय लीया गया है.
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