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पंचमांग विवाह पप्णत्ति ( भगवती) सूत्र
भावओ । दव्वओणं मइअण्णाणी मइ अण्णाण परिगयाई दव्वाइं जाणइ पासइ ॥ एवं जाव भावओ मइअण्णाणी मइअण्णाण परिगए भावे जाणइ पासइ सुयअण्णाणस्सणं भंते ! केवइए विसए पण्णत्ते ? गोयमा ! से समासओ चउबिहे प० तंजहा–दव्यओ जाव भावओ । दवओणं सुयअण्णाणी सुयअण्णाण परिगयाइं दव्वाई आघवेइ, पण्णवेइ, परूबेइ, एवं खेत्तओ, कालओ, भावओण सुय अण्णाणी सुय अण्णाण परिगए भावे आघवेइ तचेव ॥ विभंगनाणरसणं भंते ! केवइए विसए प.? गोयमा! से समासओ चउविहे प० तं० दवओ ४ । दव्वओणं विभंगनाणी विभंगनाण
परिगगई दवाइं जाणइ पासइ, एवं जाव भावओणं. विभंगनाणी विभंगनाण परिगए सब द्रव्य, क्षेत्र काल भाव जाने देखे. मति अज्ञान के द्रव्यादि चार भेद जानना. मति अज्ञानी मति अज्ञान के विषयवाले द्रव्य जाने देखे ऐसे है। क्षेत्र, काल. व भाव का जानना. श्रुत अज्ञान के द्रव्यादि
चार भेद. श्रुत अज्ञानी द्रव्य, क्षेत्र काल व भाव से श्रुत अज्ञान के विषयवाले सब द्रव्य कहे, प्ररूपे. विभंग as ज्ञान का कितना विषय कहा है ? अहो गौतम ! विभंग ज्ञान के चार भेद द्रव्य से, क्षेत्र से, काल से व
भाव से द्रव्य से विभंग ज्ञानी विभंग ज्ञान परिगत द्रव्य को जाने देखे ऐसे ही क्षेत्र, काल व भाव का
388.9 आठवा शतकका दूसरा उद्देशा HP
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