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बोहियनाणी, आएरेसणं सव्वखत्तं जाणइ पासइ, एवं कालओ भावओधि ॥ ३४ ॥ सुयनाणस्सणं भंते ! केवइए विसए पण्णत्ते ? गोयमा ! से समासओ चउविहे पप्णते, तंजहा-दव्वओ, खेत्तओ, कालओ, भावओ ॥ दन्वअणं मुयनाणी उवउत्ते
सव्व दवाइं जाणइ पासइ,एवं खेत्तओवि,कालओवि भावओणं सुयनाणी उवउत्ते सव्वभावे . जाणइ पासइ ॥ ओहिनाणस्सणं भंते ! केवइए विसए पण्णत्ते ? गोयमा ! से समा
सओ चउबिहे पण्णत्ते तंजहा-दव्वओ, खत्तओ, कालओ, भावओ ॥ दव्यओ भाव से. द्रव्य से मति ज्ञानी आदेश से सब द्रव्य जाने देखे, क्षेत्र से सब क्षेत्र जान देखे. एमे ही काल व भाव का जानना. श्रुत ज्ञान के चार भेद कहे हैं द्रव्य, क्षेत्र, काल व भाव. श्रुत ज्ञानी उपयोग सहित अभिधान थकी अभिधेय प्रति समर्थ होवे इसलिये विशेष कहा सर्व द्रव्य धर्मास्तिकायादि प्रति जाने. श्रुत ज्ञानी वैसे स्वरूप देखे. जो दश पूर्व के धारक श्रत केवली है व दश पूर्व से कम भजनाई से देखे. ऐसे ही क्षेत्रादिक की वक्तव्यता कहना. भाव से श्रुत ज्ञानी उपयोग युक्त जानकर सब जाने देखे. अवधि ज्ञानी के चार भेद द्रव्य, क्षेत्र, काल व भाव. द्रव्य से अवधि ज्ञानी रूपी पदार्थ जाने
१ जो ज्ञान का सामान्य विशेष प्रकार है उस में समुच्चय से जाने देखे परंतु भेदानुभेद सहित जाने देखे नहीं.
भावार्थ
480 पंचमांग विवाह पण्णत्ति ( भगवती) सूत्र
आठवा शतकका दूसरा उद्दशा gm