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गोयमा नो णाणी अण्णाणी, अत्थेगइया टुअण्णाणी, तिण्णि अण्णाणाई भयणाए ॥ आभिणिबोहिय नाणलद्धियाणं भंते ! जोगाके णाणी अण्णाणी, ? गोयमा! णाणी णो अण्णाणी, अत्थेगतिया दोणाणी तिणाणी चत्तारि णाणाइं भयणाई तस्सअलखियाणं
भंते ! जीवा किं णाणी अण्णाणी ? गोयमा ! णाणीवि अण्णाणीवि, जे पण ते भावार्थ
उपभोग लब्धि का जानना. वीर्य लब्धि के तीन भेद कहे हैं. १ चारित्र मोहनीय के उदय से अथवा वीर्यातराय के क्षय से असंयमयोग में प्रवृत्ति करना सो बाल वीर्य. २ संयम योग में प्रवृत्ति करना सो पंडित वीर्य और संयमासंयम योग में प्रवृत्ति करना सो बाल पंडित वीर्य. इन्द्रिय लब्धि के पांच भंद श्रोत्रे.. न्द्रिय लब्धि यावत् स्पर्शेन्द्रिय लब्धि. अहो भगवन् ! क्या ज्ञान लब्धिवाले ज्ञानी हैं या अज्ञानी हैं अहो गौतम ! ज्ञान लब्धिवाले ज्ञानी हैं परंतु अज्ञानी नहीं हैं. जो ज्ञानी हैं वे कितनेक मति व श्रुत ऐसे दो ज्ञानवाले हैं, कितनेक मति शुत व अवधि व मति श्रुत व मनःपर्यव ऐसे तीन ज्ञानवाले हैं कितनेक केवल ज्ञान वर्जकर चार ज्ञानवाले हैं और कितनेक मात्र एक केवल ज्ञानवाले हैं ऐसे पांच ज्ञान की भजना है.
जहां ज्ञान की प्राप्ति नहीं हैं ऐसे जीवों ज्ञान के अलब्धिक कहाते हैं ज्ञान के अलब्धिक कितनेक जीवों लमति व श्रत अज्ञानवाले हैं और कितनेक मति श्रत अज्ञान व विभंग ज्ञान ऐसे तीन अज्ञानवाले हैं इससे
ज्ञान के असब्धिक में तीन अज्ञान की भजना है. अहो भगवन् ! आभिनिवोधिक ज्ञानवाले क्या
4. अनुवादक-बालब्रह्मचारी पनि श्री अमोलक ऋषिजी
प्रकाशक-राजावहादर लाला मुखदेवमहायजी ज्वालाप्रसादजी