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________________ 880% विवाह पण्णत्ति ( भवगती ) सूत्र <Page » भावार्थ एगागारा प० एवं जाव उवभागलडी एगागारा वीरियलद्धीणं भंते ! कइविहा प. ? गोयमा ! तिविहा प० तंजहा- बालवीरियलद्धी, पंडियवीरियलद्धी, बालपडियवीरि. यलद्धी । इंदियलहीणं भंते ! कतिविहा प० गोयमा ! पंचविहा पं० तं० सोइदिय लदी जाव फासिंदियलडी णाणलडियाणं भंते ! जीरा किंणाणी अण्णाणी ? गोयमा ! णाणी, नो अण्णाणी, अत्थेगइया दुणाणी एवं पंचणाणाई भयणाए ॥ तस्स अलद्धियाणं भंते ! जीवा किंणाणी अण्णाणी ? है उपस्थापना करे सो छेदोपस्थापनीय चारित्र लब्धि इस के दो भेद सातिचार व निरतिचार. इस चारित्रका आरोपण तीर्थ अतिक्रमते होता है जैसे पार्श्वनाथ स्वामी के तीर्थ के साधु महावीर स्वामी के तीर्थ में जावे तब आरोपना करें यह निरतिचार होता है और सातिचार सो मूत्रत की घात से पुनः व्रतका आरोपण करना. ३ परिहार सो तप विशेष की विशुद्धि से आत्मा का निर्मलपना सो परिहार विशुद्ध चारित्र. ४ सूक्ष्म कीटी समान संज्वल का लोभ रहे सो सूक्ष्म संपराय चारित्र और ५ जैसे भगवन्तने कहा वैसे ही पालना सो यशख्यात चारित्र. अहो भगवन् ! चारित्राचाग्त्रि लब्धि के कितने भेद कहे हैं? अहो मौतम ! मूलगन उत्तरगुन भेद की अविवक्षा मे अथवा कषाय के क्षयोपशम लभ्यभावपारणाम मात्र की विवक्षा से चारित्राचारित्र एकाकार है ऐसे ही दान लब्धि, लाभ लब्धि, भोग लब्धि वकी आठवा शतक का दूसरा उद्देशा 0808
SR No.600259
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages3132
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size50 MB
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