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१.१ अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी
गोयमा ! पंचविहा प० त० आभिणिबोहियाणाणलही जाव केवलनाणलही ॥ . अन्नाणलहीणं भंते ! कइविहा प० ? गोयमा ! तिविहा प० तं० मइअण्णाणलडी सुयअण्णाणलद्धी, विभंग णाणलही। दसणलहीणं भंते ! कतिविहा प. ? गोयमा ! तिविहा प० तं० सम्मदंसणलडी, मिच्छादंसणलद्धी सम्मामिच्छा दसणलखी। चरित्तलहीणं भंते ! कइविहा प. ? गोयमा ! पंचविहा पन्नत्ता, तंजहा सामाइय चरित्तलद्धी, छेदोवढावणियलद्धी, परिहारविसुद्धि चरित्तलडी, सुहुमसंपराय
चरित्तलडी, अहक्खायलद्धी । चरित्ताचरित्तलहीणं भंते ! कइविहा प० गायमा ! भोग लब्धि ९ वीर्य लब्धि व १० इन्द्रिय लब्धि. ज्ञान लब्धि के पांच भेद मतिज्ञान लब्धि यावत् केवल ज्ञान लब्धि. अज्ञान लब्धि के तीन भेद मति अज्ञान लब्धि यावत् विभंग ज्ञान लब्धि. दर्शन लब्धि के तीन भेद समदर्शन लब्धि, मिथ्या दर्शन लब्धि व समापिथ्या दर्शन लब्धि. चारित्र लब्धि के पांच भेद , सामायिक चारित्र लब्धि जो सावध विरतिरूप. इस के दो भेद १. इतर सो अल्प काल रहे. यह भरत इरवत क्षेत्र में प्रथम व अंतिम तीर्थंकरों के समय में आरोपित होता है. २ यावज्जीव का सो शेष वाइस तीर्थंकर के समय में व महाविदेह क्षेत्र में होता है. २ पूर्व संयम का व्यवच्छेद कर जिस की
* प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदेवसहायजी गालाप्रसादजी *