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भावार्थ
4 पंचमांग विवाह पण्णति ( भगवती ) सूत्र
नियमा एगणाणी: केवलणाणी, जे अण्णाणी ते अत्थेगइया दुअण्णाणी, तिण्णि अण्णा भयणा । एवं सुयगागलद्धियावि ॥ तस्म अलाय वि जहा आभिणिबोहियासलडिया || ओहिणाणलडियाणं पुच्छा ? गोयमा ! णाणी, णो अण्णाणी, अत्गइया तिणाणी अत्थेगइया चरणाणी; जे तिष्णाणी ते आभिणिबोहियणाणी, सुवणाणी, ओहिणाणी जे चउणाणी ते आभिणिबोहियणाणी, सुयणाणी, ओहिणाणी, मणपजवाणी । तस्स अलडियाणं पुच्छा ? गोयमा ! णाणीचि अण्णाणीवि, ओहिणाणवजाइं चत्तारि णाणाई तिष्णि अण्णाणाई भयणाए । मणपज्जवणाणलद्धियाणं
या अज्ञानी है ? अहो गौतम ! आभिनिबोधिक ज्ञानवाले ज्ञानी हैं परंतु अज्ञानी नहीं हैं. इन में कितनेक जीव मति श्रुत दो ज्ञान कितनेक तीन और कितोक चार ज्ञानवाले होते हैं इसलिये इस में चार ज्ञान की भजना कही हैं. केवल ज्ञान की प्राप्ति में अन्य ज्ञानों का आविर्भाव नहीं होता है इसलिये केवल ज्ञान नहीं ग्रहण किया है. इस के अलब्धिक में केवल ज्ञान की नियमा है केवल ज्ञान सिवाय अन्य ज्ञानों की उपस्थिति में मतिज्ञान निश्चय ही होता है और तीन अज्ञान की भजना है. जैसे मति ज्ञान का कहा वैसे डी श्रुत ज्ञान के लब्धिक व अलब्धिक में कहना. अवधि ज्ञान की लब्धि में चार ज्ञान की भजना है उस की अलब्धि में अवधि ज्ञान छोडकर शेष चार ज्ञान और तीन अज्ञान की
भजना है. मनःपर्यव ज्ञान की
१००% आठवां शतकका दूसरा उद्देशा +8+
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