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( भगवती ) सूत्र
गोपमा ! तिण्णि णाणा तिण्णि अण्णाणा भयणाए । अपज्जत्तगाणं भंते ! नेरइया किण्णाणी अण्णाणी ? तिणि णाणा नियमा, तिण्णि अण्णाणा भयणाए, एवं जाव थाणियकुमारा, पुढविकाइया जाव वणस्सइकाइया जहा एगिदिया ॥ बेइंदि. याणं पुच्छा ? दो णाणा दो अण्णाणा नियमा, एवं जाव पंचिंदिय तिरिक्ख जोणियाणं ॥ अपजत्तगाणं भंते ! मणुस्सा किण्णाणी अण्णाणी ? तिणि नाणाई
भयणाए दो अण्णाणाइं नियमा || चाणमंतरा जहा नेरइया, अपज्जत्तगा जोइसिय भावार्थस्था में उत्पन्न होते हैं जब विभंग ज्ञान का अभाव होता है. और विभंग ज्ञान उत्पन्न हुए पीछे पर्याप्त
होजाते हैं इस से तीन अज्ञान की नियमा कही. असुरकुमारादि दश भुवनपति भी नारकी जैसे कहना. १५ पर्याप्त पृथ्वीकायिकादि पांच स्थावर और तीन विकलेन्द्रिय में भी दो अज्ञान की नियमा. विकलेन्द्रिय के पर्याप्ता में सम्यक्त्व नहीं होता है. पर्याप्त तिर्यंच पंचेन्द्रिय में तीन ज्ञान व तीन अज्ञान की भजना है पर्याप्त मनुष्य में पांच ज्ञान तीन अज्ञान की भजना. वाणव्यंतर, ज्योतिषी, व वैमानिक में तीन ज्ञान तीन अज्ञान की नियमा कहना. अपर्याप्त जीव में तीन ज्ञान नीन अज्ञान की भजना.. अपर्याप्त नारकी में तीन ज्ञान की नियमा तीन अज्ञान की भजना. ऐसे ही स्थनित कुमारतक कहना. पृथ्वीकायिक यावत् . वनस्पतिकायिक के अपर्याप्त में दो अज्ञान की नियमा. वेइन्द्रिय, तेइन्द्रिय व चतुरेन्द्रिय में दो ज्ञान,
आठवा शतक का दूसरा उद्देशा