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सूत्र
भावार्थ ।
48 अनुवादक - बालब्रह्मचारीमुनि श्री अमोलक ऋषिजी
जीवा किणाणी अण्णाणी ? गोवमा ! जहा पुढविकाइया । बादराणं भंते ! जीवा किणाणी अण्णाणी ? जहा सकाइया, नो मुहुमा नो बादराणं भंते! जीवा ? जहा सिद्धा ॥ १३ ॥ पज्जत्ताणं भंते! जीवा किण्णाणी अण्णाणी ? जहा सकाइया । पज्जत्ताणं भंते! नेरइया किण्णाणी ? तिष्णि नाणा तिष्णि अण्णाणा नियमा, जहा नेरइया एवं जात्र थणिय कुमारा । पुढविकाइया जहा एगिदिया, एवं जाव चरिंदिया || पज्जत्ताणं भंते ! पंचिदिय तिरिक्ख जोणिया किण्णाणी अण्णाणी ? तिष्णि णाणा तिणि अण्णाणा भयणाएं, मणुस्सा जहा सकाइया, वाणमंतर जोइ सिय वेमाणिया जहा नेरइया || अपज्जत्तगाणं भंते ! जीवा किण्णाणी अण्णाणी ? {सूक्ष्म जीव ज्ञानी हैं या अज्ञानी हैं ? अहो गौतम ! सूक्ष्म जीव में मात्र पृथ्वीकायिक जैसे दो अज्ञान {हैं. बादर जीवों में पांच ज्ञान व तीन अज्ञान की भजना है. को सूक्ष्म तो बादर में केवल ज्ञान की नियमा है ॥ १३ ॥ अब पर्याप्त द्वार कहते हैं. अहो भगवन् पर्याप्त जीव क्या ज्ञानी हैं या अज्ञानी है ? अहो गौतम ! पर्याप्त जीव ज्ञानी भी हैं व अज्ञानी भी हैं. उन में पांच ज्ञान व तीन { अज्ञान की भजना है, पर्याप्त नारकी में तीन ज्ञान व तीन अज्ञान की नियमा है.
असंज्ञी अपर्याप्ताव
* प्रकाशक राजाबहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी *
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