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________________ 4 शब्दार्थ 1 पंचमांग विवाह पण्णत्ति ( भगवती ) मूत्र 88 प्रकारका म० मतिअज्ञान मु० श्रुतअज्ञान वि० विभंगज्ञान म० मतिअज्ञान च० चार प्रकारका उ० अवग्रह जा. यावत् धा० धारणा उ० अवग्रह दु० दोपकारका अ० अर्थावग्रह वं० व्यंजनावग्रह ए. ऐसे ७ ज. जैसे आ० मतिज्ञान में त० तैसे ण विशेष ए० एकायिक व०वर्जना जा०यावत् ना० नाइन्द्रिय धारणा से वह किं० कैसे सु० श्रुतअज्ञान जं. जो०३०इस अ. अज्ञान ने मि० मिथ्यादष्टि ज. जसे नं० नंदी जा० यावत् च० चार वे० वेद सं० सांगोपांग से वह कि० केसे वि० विभंगज्ञान अ० अनेकप्रकार का गोयमा ! तिविहे पण्णत्ते तंजहा मइ अण्णाणे सुयअण्णाणे, विभंगनाणे ॥ से किं तं मइ अण्णाणे ? मइ अण्णाणे चउन्विहे १० तंजहा उग्गहे जाव धारणा ॥ से किं तं उग्गहे ?, उग्गहे दुविहे पण्णत्ते, तंजहा. अत्थोग्गहेय वंजणोग्गहेय, है एवं जहेव आभिणिबोहिय नाणं तहेव, णवर एगट्टियवजं जाव नोइंदिय धारणा ॥ सेत्तं धारणा ॥ सेत्तमइ अण्णाणे ॥ सेकिंत सुयअण्णाणे ? सुयअण्णाणे जं इमं गौतम ! अज्ञानके तीन भेद कहे हैं १ मति अज्ञान २ श्रुत अज्ञान व ३ विभंग ज्ञान. मति अज्ञान क्या है ? मति अज्ञान के चार भेद कहे हैं अवग्रह, ईहा, अवाय व धारणा. उन में से अवग्रह के दो भेद अर्थावग्रह व व्यंजनावग्रह. पांचोइन्द्रियों वमन से अर्थ का ग्रहण होना सो अर्थावग्रह और जैसे प्रदीप से वस्तु प्रगट की जावे वैसे प्रगट करना सो व्यंजनावग्रह. यह मन व चक्षु सिक्य चारों इन्द्रियों से AAmAAAA. आठवा शतकका दूसरा उद्देशा 80403:00 । 488
SR No.600259
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages3132
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size50 MB
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