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शब्दाथ
पंचमाङ्ग विवाह पण्णत्ति (भगवती)
द० दशस्यान छ० छद्यस्य स सर्व भाव से न नहीं जा० जाने न नहीं पा० देखे ध० धर्मास्तिकाय अ० अधर्मास्तिकाय आ० आकाशास्तिकाय जी० जीव अ० सिद्ध ५० पग्माणु पुद्गल स० शब्द गं० गंध वा० वायु अः यह जि० जिन भ० होगा न नहीं भ० होगा अ० यह स० सर्व दुःखों का अं०
१०३९ अंत क० करेगा नो नहीं क• करेगा ए. इनको उ० उत्पन्नज्ञान दं० दर्शन के धारक अ० अर्शन जि. जिन के • केवली म सर्वभाव से जा० जाने प० देखे ध० धर्मास्तिकाय जा० यावत् क० करेगा न नहीं क० करेगा ॥ ५॥ क० कितना प्रकारका भ० भगवन् ना० ज्ञान प० प्ररूपा गो० गौतम
नपासइ,तंजहा-धम्मात्थिकायं, अधम्मात्थिकायं आगासस्थिकायं, जीवं असरीरपडिबडं, परमाणुपोग्गलं,सहं,गंधे,वातं, अयं जिणे भावस्सइ नवा भविस्सइ, अयं सव्व दुक्खाणं अंतं करिस्सइ नो वा करिस्सइ ॥ एयाणिचेव उप्पण्ण णाणदसणधरे अरहा जिणे । केवली सव्वभावेणं जाणइ पासइ तं० धम्मत्थिकायं जाव करिस्सइ नवा करिस्सइ ।
॥ ५ ॥ कइ विहेणं भंते ! णाणे पण्णत्ते ? गोयमा ! पंचविहे नाणे पण्णत्ते जान सकते व देख सकते हैं. धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय, आकाशास्तिकाय, शरीर रहित जीव. परमाणु पुद्गल, शब्द, गंध; वात, यह जिन होगा या नहीं सो और यह सब दुःखों का अंत करेगा या नहीं. उक्त दश स्थानको ज्ञान दर्शनके धारक अरिहंत जिन केवली सर्व भाव से जान सकते व देख सकते हैं ॥५॥ है।
4.28.आठवा शतकका दूसरा उद्देशा 8
भावार्थ
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