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49 अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषीजी
जाव क-मासीविसे । जइ देव कम्मासीविसे किं भवणवासी देव कम्मासी... विसे जाव वेमाणिय देव कम्मासीविसे ? गोयमा ! भवणवासी देव । कम्मासीविसे वि, वाणमंतर देव जोइसिय वेमाणिय देव कम्मासीविसेवि ॥ जइ भवणवासी देव कम्मासीविसे किं असुर कुमार भवणासी देव कम्मासीविसे जाव थणिय कुमार जाव कम्मासीविसे ? गोयमा ! असुर कुमार भवणवासी देव कम्मासीविसे जावथणिय कुमार जाव कम्मासीविसे, जइ असुर कुमार जाव कम्मासीविसे
किं पजत्ता असुर कुमार भवणवासी देव कम्मासीविसे किं अपजस्ता असुर कुमार तिर्यंच पंचेन्द्रिय में भी पर्याप्त कर्म आशीविष है परंतु अपर्याप्त आशीविष नहीं है. भहो भगवन् ! यदि मनुप्य कर्म आशीविष है तो क्या संमूच्छिम या गर्भज मनुष्य कर्माशीविष है ? अहो गौतम ! वैकेय शरीर. जैसे संख्यान वर्ष के आयुष्यवाले कभनि में उत्पन्न होनेवाले पर्याप्त मनुष्य कर्म आशीविष है। अपर्याप्त नहीं है. यदि देव कर्माशीविष है तो क्या भवनवासी, वाणव्यंतर, ज्योतिषी व वैमानिक देव कर्म आशीविष है? अहो गीतम! भवनपति, बाणव्यंतर, ज्योतिषी व वैमानिक देव कर्म आशीविष है. यदि भवनवासी देव आशीविष है तो क्या असुर कुमार देव आशीविष है यावत् स्थनित कुमार देव आशी
. प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदेवसहायजी ज्वालामसादजी*
भावार्थ