________________
शब्दार्थ
|
AAAAY
48 अनुवादक-चालब्रह्मचारीमुनि श्री अमोलक ऋषिजी -
जा० जाति आशीविष ए. ऐसे न० विशेष स० समय खेल क्षेत्र १० प्रमाणमात्र बों. शरीर वि० । विषसे पि० विषपरिगत से शेष तं- तैसे जा. यावत् का करेंगे ॥ ३ ॥ सरल शब्दार्थ ॥४॥
तिवा ॥ मणुस्सजाइ आसीविसस्सवि एवंचेव, नवरं समयखेत्तप्पमाणमेत्तं बोदि विसेणं विसपरिगयं सेसं तंचेव जाव करिस्संतिवा ॥३॥जइ कम्मआसीविसे किं नेरइय कम्म आसीविसे, तिरिक्ख जोणिय कम्म आसीविसे, मणुस्स कम्म आसीविसे, देवकम्मआसीविसे ? गोयमा ! नो नेरइयकम्म आसाविसे, तिरिक्ख जोणिय कम्म आसीविसे, मणुस्स कम्म आसाविसे, देव कम्मआसीविसे ॥ जइ तिरिक्ख । जोणिय कम्म आसीविसे,किं एगिंदिय तिरिक्ख जोणिय कम्मासीविसे, जाव पंचिंदिय तिरिक्ख जोणिय कम्मासीविते ? गोयमा ! नो एगिदिय तिरिक्ख जोणिय कम्म शरीर को अपने विष से विषमय बनाने को समर्थ है,, और मनुष्य जाति आशीविष समय क्षेत्र (अढाई. द्वीप) प्रमाणवाला शरीर को विष से विषय बनाने को समर्थ है परंतु ऐसा किसीने किया नहीं, करते नहीं व करेंगे नहीं ॥ ३ ॥ यदि कर्म आशीविष है तो क्या नारकी कर्म आशीविष, तिर्यंच कर्म आशीविष, मनुष्य कर्म आशीविष व देव कर्म आशीविष है ? अहो गौतम ! नारकी कर्म आशीविष नहीं है परंतु तिर्यंच, मनुष्य व देव कर्म आशीविष है. यदि तिर्यंच कर्म आशीविष है तब क्या एकेन्द्रिय कर्माशीविष
* प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी .
भावार्थ
1