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शब्दार्थ - परिगत वि. विस्तृत करना ५० करने को ए० इतना वि. विषय नो. नहीं सं० संपत्ति से क० कीया 41 मक० करते हैं क० करेंगे मं० मंडुक जा० जाति आशीविष पु० पृच्छा गो० गौतम ५० समर्थ मं० मंदुक
जाः जाति आशीविष भ० भरत प० प्रभाणमात्र बो० शरीर वि. विषसे वि. विषपरिगत से• शेष त० तैसे जा. यावत् क करेंगे ए ऐसे उमजा जाति आयोतिष व विशेष जं: जंबूढीप प० प्रमाणमात्र बों० शरीर वि. विषले वि० विपरिगत से० शेष तं• तैसे जा० यावत् क० करेंगे म० मनुष्य
विसहमाणं पकरेत्तए,एवइए विसए नो चेवणं संपत्तीए, करिमुवा, करंतिवा करिस्सांतवा,। मंडुक्कजाइ आसीविसपुच्छा? गोयमा! पभूणं मंडुक्कजाइ आसीविसे भरहप्पमाणमेत्तं बोंदि विसेणं विसपरिगयं, सेसं तंचेव जाव करिस्सातवा ॥ एवं उरगजाइ आसीविसस्सवि
णवर जंबुद्दीवप्पमाणमेत्ते बोदिं विसेणं विसपरिगयं, सेसं तंचेव जाव करिस्संभावार्थ
भरत क्षेत्र प्रमाण (साधिक २६३ योजन) वाला शरीर को अपने विष से विषमय बनाने को वृच्छिक जाति आशीविष समर्थ है परंतु इतना किसीने किया नहीं, करते नहीं व करेंगे भी नहीं. अहो भगवन् । मेंडक जाति आशीविष का कितना विषय कहा है ? अहो गौतम ! मेंडक जाति आशीविष भरत क्षेत्र प्रमाण (साधिक ५२६ योजन) वाला शरीरको अपने विषसे विषमय बनाने को समर्थ है. यह पात्र विषया परंतु ऐसा किसीने किया नहीं, करते नहीं च करेंगे नहीं. सर्प जाति आशीविष नमूद्वीप प्रमाणवाला है।
पंचमांग विवाह पण्णत्ति ( भगवती) मूत्र
भाठया शतकका दूसरा उद्देशा