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80 पंचमांग विवाह पण्णत्ति ( भगवती) मूत्र
णप्पओगपरिणयायः किं आरंभसच्चमणप्पओगपरिणया जाच असमारंभ सच्चमणप्पओग परिणया ? गोयमा ! आरंभसच्चमणप्पआग परिणयावा, जाव असमारंभ सच्चमणप्प
ओगपरिणयावा, अहवेगे आरंभ सच्चमणप्पओगपरिणए, एगे अणारंभ सच्चमणप्पओगपरिणएवा; ॥ एवं एएणं गमएणं दुयसंजोगो नेयव्यो, सव्वे संजोगा जत्थजत्तिया उटुंति ते भाणियब्वा जाव सव्वट्ठसिद्धगति ॥ जइ मीसापरिणया किं भणमीसापरिणया ? एवं मीसापरिणयावि॥जइ वीससा परिणया किं वण्णपरिणया गंधपरिणया?
एवं वीससा परिणयावि जाव अहवा एगे चउरंस संठाण परिणए, एगे आयय एक मीश्र मन व एक व्यवहार मन प्रयोग परिणत है ॥ २२ ।। यदि सत्य मन प्रयोग परिणत है तो आरंभ सत्य मन प्रयोग परिणत है यावत् असमारंभ सत्य मन प्रयोग परिणत है? अहो गौतम! आरंभ सत्य मन प्रयोग परिणत यावत् असमारंभ सत्य मा प्रयोग परिणत है. अथवा एक आरंभ सत्य मन प्रयोग परिणत और एक अनारंभ सत्य मन प्रयोग परिणत ऐसे ही द्वी संयोगी भांगे जानना. इस तरह जिन को जितने संयोगी भांग होवे उतने कहना. मीश्र परिणत का प्रयोग परिणत जैसे कहना. यदि बीस्रसा परिणत है तो क्या वर्ण परिणत है या गंध परिणत है ! इन में उसी तरह भांग कहन यावत् एक चौरंस
आठवा शतकका पहिला उद्देशा-Pr
भावार्थ
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