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सूत्र
भावार्थ
48 अनुवादक - बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी -
या जाव सुक्किलवण परिणया, गंधपरिणया ते दुबिहा पण्णत्ता, तं० सुगंध परिणया, दुग्गंध परिणयावि, एवं जहा पण्णवणापए तहेव निरवसेसं जाव संठाणओ आयत संठाण परिणया से वण्णओ, कालवण्ण परिणयावि जाव लुक्ख फास परि
या ॥ १३ ॥ एगे भंते ! दव्ये किं पयोग परिणए, मीसापरिणए, वीससा परिणए ? गोयमा ! ओग परिणएवा, मीसा परिणएवा, वीससा परिणएवा ॥ जइ पओग परिणए किं मणपओग परिणए, वइपओग परिणए, कायपओग परिणए ? गोयमा ! मणप्पओग परिणएवा, वयपओग परिणएवा, कायप्पओग परि
यावत् शुक्ल वर्ण परिणत. गंध परिणत के दो भेद सुरभिगंध व दुरभिगंध परिणत. रस परिणत पांच प्रकार के तिक्त परिणत यावत् मधुर रस परिणत. स्पर्श परिणत के आठ भेद कर्कश स्पर्श परिणत ( यावत् रूक्ष स्पर्श परिणत. संठाण के पांच भेद समचतुस्वसंस्थान परिणत यावत् आयत संस्थान परिणत ( वगैरह सब अधिकार लम्बगोल संस्थान परिणत, वर्ण से श्याम वर्ण यावत् रूक्ष स्पर्श परिणततक पनवणा सूत्रानुसार जानना || १३ || अब एक पुद्गल द्रव्य परिणत आश्री प्रश्न करते हैं. अहो भगवन् ! क्या एक द्रव्य प्रयोग परिणत, मीश्र परिणत व स्वभाव परिणत है ? अहो गौतम ! एक पुल प्रयोग
* प्रकाशक- राजाबहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी *
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