________________
१०१०
अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषीजी 800
ओरालिय तेया कम्मा सरीर फासिदिय पओग परिणया ते वण्णओ काल वण्ण परिणया जाव आयत संठाण परिणया । जे पज्जत्ता सुहुम पुढवि काइय एगिदिय ओरलिय तेया कम्मा सरीर फासिंदिय पओग परिणया एवं चेव, एवं जहाणुपुबीए जस्स जइसरीराणि इंदियाणि य तस्स तत्तियाणि भाणियव्वाणि जाव जे पजत्ता सव्व ट्ठसिद्ध अणुत्तरोववाइय कप्पातीय वेमाणिय देव पंचिंदिय वेउन्वियतेया कम्मा सरीर सोइंदिय जाव फासिंदिय पओग परिणया ते वण्णओ काल वण्ण परिणया जाव आ
यत संठाण परिणयावि एए णव दंडगा ॥ ११ ॥ मीसा परिणयाणं भंते ! पोग्गला इन्द्रियों होवे उतनी लेकर वर्णादि पच्चीस बोल ग्रहण करना ॥ १० ॥ जो अपर्याप्त सूक्ष्म पृथ्वीकायिक एकेन्द्रिय उदारिक, वैक्रेय, तेजस व कार्माण शरीर स्पर्शेन्द्रिय परिणत हैं वे श्याम वर्ण यावत् लम्बगोल संस्थान परिणत हैं. ऐसे ही सर्वार्थ सिद्ध विमान तक जिन को जितनी इन्द्रियों व शरीर हैं उन को उतनी इन्द्रियों व शरीर कहना. जो सर्वार्थ सिद्ध अनुत्तरोपपातिक कल्पातीत वैमानिक देव पंचेन्द्रिय, वैक्रय,
तेजस कार्माण श्रोतेन्द्रिय यावत् स्पर्शेन्द्रिय परिणत हैं वे वर्ण से श्याम वर्ण परिणत यावत् संस्थान से मालम्बगोल संस्थान परिणत हैं ॥ ११ ॥ अहो भगवन् ! मीश्र परिणत पुद्गल के कितने भेद कहे हैं ।
* प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी *
भावार्थ