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एवं जहाणुपुब्बीए जस्स जइसरीराणि जात्र जे पजत्ता सव्व? सिद्ध अणुत्तरोववाइप कप्पातीय वेमाणिय देव पंचिंदिय वेउन्विय तेयाकम्मा सरीरपओग परिणया तेवण्णओ कालवण्णपरिणयावि जाव आयत संठाण परिणयावि ॥१॥ जे अपजत्ता सुहुम पुढवि काइय एगिदिय फासिंदिय पओग परिणया ते वण्णओ काल वण्ण परिणया जाव आयत संठाणपरिणयावि॥ जे पज्जत्ता सुहम पुढवि काइय एगिदिय फासिंदिय पओग परिणया एवं चत्र, एवं जहाणुपुवीए जस्स जइ इंदियाणि तस्स तत्तियाणि भाणियव्वाणि जाव जे पजत्ता सव्वट्ठ सिद्ध अणुत्तरोववाइय कप्पातीय वेमाणिय देव पंचिंदिय सोइंदिय जाव फासिंदिय पओग परिणया तेवण्णओ काल वण्ण परिणयावि
जाव आयत संठाण परिणयावि ॥ १० ॥ जे अपज्जत्ता सुहुम पुढवि काइय एगिदिय भावार्थ जानना. ऐसे ही अनुक्रम से जिनके जितने शरीर हैं उन को उतने शरीर ग्रहण कर जो सर्वार्थसिद्ध विमान org
क्रेय तेजस कार्माण शरीर परिणत हैं वे श्यामवर्ण यावत् लम्बगोल संस्थान परिणत है. ॥९॥ 3जो अपर्याप्त सूक्ष्म पृथ्वी कायिक एकेन्द्रिय स्पर्शेन्द्रिय प्रयोग परिणत हैं वे वर्णसे श्यामवर्ण यावत्
संस्थान से लम्बगोल संस्थान परिणत हैं. ऐसे ही अनुक्रम से सर्वार्थ सिद्ध विमान पर्यंत जिन को जितनी
पंचमाङ्ग विवाह पण्णत्ति (भगः ती) मूत्र A8
आठवा शतकका पहिला उद्देशा -