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पत्र
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कप्पातीय बेमाणिय देव पंचिंदिय वेउव्विय तेयाकम्मा सरीरपओगपरिणया ते सोइंदिय चक्खिदिय घाणिदिय जिभिदिय फासिदिय पओग परिणया ॥ ७ ॥ जे अपज्जत्ता सुहुम पुढविकाइय एगिदिय पओग परिणया तेवण्णओ कालवण्ण परिणया,
णीलवण्णपरिणया, लोहियवण्ण परिणया, हालिदवण्णपरिणया, सुकिल्लवण्ण परिणया ___वि ॥ गंधओ-सुब्भि गंधपरिणया, दुभि गंधपरिणयावि रसओ तित्तरसपरिणयावि;
कडुयरस परिणयावि, कसायरसपरिणयावि अंबिलरस परिणपावि महुररसपरिणयावि ॥
फासओ कक्खड फासपरिणयावि, जाव लुक्ख फासपरिणयावि ॥ सठाणओ परिमंभावार्थ । सर्वार्थ सिद्ध कल्पातीत वैमानिक पंचेन्द्रिय देव वैक्रेय तेजस व कार्माण शरीरवाले हैं वे श्रोतेन्द्रिय,चक्षुइन्द्रिय
गेन्द्रिय, जिव्हन्द्रिय स्पर्शेन्द्रिय प्रयोग परिणत हैं. यह पांचवा दंडक हुवा ॥ ७॥ अब वर्ण, गंध रस. स्पर्श व संठाण का दंडक कहते हैं. जो अपर्याप्त मूक्ष्म पृथ्वीकायिक एकेन्द्रिय प्रयोग परिणत हैं वे वर्ण से श्याम, नील, रक्त, पीत व श्वेत वर्ण प्रयोग परिणत हैं, गंध से सुरभिगंध दुर्गंधप्रयोग परिणत हैं,
रस से तिक्त, कटुक, कषाय, अंबिल व मधुररस परिणत हैं, स्पर्श से कर्कश, कोमल, शीत, ऊष्ण, गुरु, 1 लघु स्निग्ध व रूक्ष परिणत हैं और संस्थान से परिमंडल, वर्तुल, त्र्यंत, चौरंस व लम्बगोल परिणत हैं. १३४
पण्णत्ति (भगवती) सूत्र पंचभाङ्ग विवाह
आठवा शतक का पहिला उद्देशा
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