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सूत्र
भावार्थ
48 अनुवादक - बालब्रह्मचारी मुाने श्री अमोलक ऋषिजी
परिणया । देव पचिदिय पओग परिणया, जाव सव्वसिद्ध अणुत्तरोक्वाइय कप्पातीय वैमाणि देव पंचिंदिय पओग परिणया ॥ ६ ॥ जे अपज्जत्ता सुहुम पुढवि काइय एगिंदिय ओरालिय तेयाकम्मा सरीर पओग परिणया, ते फासिंदिय पओग परिणया, जेपज्जत्ता सुहुम पुढविकाइय एगिंदिय ओरालिय तेयाकम्मा सरीर पओग परिणया एवं चेव । अपज्जत्त बादर पुढविकाइय एगिंदिय ओरालिय तेयाकम्मा सरीर पओग परिणया एवं चेव । एवं पज्जत्तगावि, एवं एएणं अभिलावेणं जस्स जइ इंदियाणि सरीराणिग ताणि भाणियव्वाणि, जाव जे अपजत्ता सन्वट्टसिद्ध अणुत्तरोववाइय {के पर्याप्त व अपर्याप्त में पांच इन्द्रियों परिणत हैं ॥ ६ ॥ औदारिकादि शरीर में इन्द्रियादि भेद से पांचवा {दंडक कहते हैं. जो अपर्याप्त सूक्ष्म पृथ्वीकायिक एकेन्द्रिय उदारिक, तेजस, कार्माण शरीर प्रयोग {परिणत हैं वे स्वर्शेन्द्रिय प्रयोग परिणत हैं. जो पर्याप्त सूक्ष्म पृथ्वीकाय एकेन्द्रिय उदारिक, तेजम, कार्माण { शरीर प्रयोग परिणत हैं वे भी स्पर्शेन्द्रिय प्रयोग परिणत है. ऐसे ही अपर्याप्त बादर पृथ्वीकाय व पर्याप्त बादर पृथ्वीकायिक एकेन्द्रिय औदारिकादि शरीर स्पर्शेन्द्रिय प्रयोग परिणत हैं. इस प्रकार उक्त कथनानुसार जिस स्थान जितने शरीर व जीतनी २ इन्द्रियों होवें वैसे कहना,
यावत् अनुत्तर विमान में
* प्रकाशक - राजाबहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी *
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